मै-कदा छोड़ के मैं तेरी तरफ़ आया हूँ
सरफ़रोशों से मैं बाँधे हुए सफ़ आया हूँ
लाख हूँ मय-कश आवारा ओ आशुफ़्ता-मिज़ाज
कम से कम आज तो शमशीर-ब-कफ़ आया हूँ
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मादाम
आप की मख़्मूर आँखों की क़सम
शौक़-ए-गुरेज़ाँ
हमारा झंडा
शाएर हूँ और अमीं हूँ उरूस-ए-सुख़न का मैं
मजबूरियाँ
इस महफ़िल-ए-कैफ़-ओ-मस्ती में इस अंजुमन-ए-इरफ़ानी में
तिरे माथे पे ये आँचल तो बहुत ही ख़ूब है लेकिन
साज़गार है हमदम इन दिनों जहाँ अपना
करिश्मा-साजी-ए-दिल देखता हूँ
दफ़्न कर सकता हूँ सीने में तुम्हारे राज़ को
या तो किसी को जुरअत-ए-दीदार ही न हो