फिर किसी के सामने चश्म-ए-तमन्ना झुक गई
शौक़ की शोख़ी में रंग-ए-एहतराम आ ही गया
Habib Jalib
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Gulzar
Jaun Eliya
Wasi Shah
Parveen Shakir
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या तो किसी को जुरअत-ए-दीदार ही न हो
हुस्न-ओ-इश्क़
शहर-ए-निगार
हमारा झंडा
कुफ़्र क्या तसलीस क्या इल्हाद क्या इस्लाम क्या
पर्दा और इस्मत
आशिक़ी जाँ-फ़ज़ा भी होती है
मुसाफ़िर
दफ़्न कर सकता हूँ सीने में तुम्हारे राज़ को
जिगर और दिल को बचाना भी है
कुछ तुम्हारी निगाह काफ़िर थी
ख़िराज-अक़ीदत