आदत Poetry (page 5)
जिस को आदत वस्ल की हो हिज्र से क्यूँकर बने
रशीद लखनवी
'मीर'-जी से अगर इरादत है
रसा चुग़ताई
दश्त की प्यास किसी तौर बुझाई जाती
रम्ज़ी असीम
लो शुरूअ नफ़रत हुई
रमेश कँवल
सदा-ए-दिल इबादत की तरह थी
राजेन्द्र मनचंदा बानी
उन को ये शिकायत है कि हम कुछ नहीं कहते
राजेन्द्र कृष्ण
किस तरह जीते हैं ये लोग बता दो यारो
राजेन्द्र कृष्ण
अब के बिखरा तो मैं यकजा नहीं हो पाऊँगा
राहुल झा
दिल के पर्दे पे चेहरे उभरते रहे मुस्कुराते रहे और हम सो गए
इरफ़ान सत्तार
परिंदा आइने से क्या लड़ेगा
इमरान आमी
बोलिए करता हूँ मिन्नत आप की
इमदाद अली बहर
लबों पर प्यास हो तो आस के बादल भरे रखियो
इब्राहीम अश्क
इतनी सी इस जहाँ की हक़ीक़त है और बस
हुसैन सहर
कभी वफ़ूर-ए-तमन्ना कभी मलामत ने
हुसैन आबिद
जो कुछ भी गुज़रता है मिरे दिल पे गुज़र जाए
हिमायत अली शाएर
तिरे दर्द से जिस को निस्बत नहीं है
हसरत मोहानी
शौक़ से आप ये अंग्रेज़ी दवा भी लेते
हसीब सोज़
अब के यारो बरखा-रुत ने मंज़र क्या दिखलाए हैं
हसन रिज़वी
वो मुझ से बे-ख़बर हैं उन की आदत ही कुछ ऐसी है
हसन बरेलवी
किसी के हिज्र में यूँ टूट कर रोया नहीं करते
हसन अब्बास रज़ा
आवाज़
हारिस ख़लीक़
मुझे विर्सा नहीं मिला
हमीदा शाहीन
साथ रहते इतनी मुद्दत हो गई
हफ़ीज़ जौनपुरी
उठो अब देर होती है वहाँ चल कर सँवर जाना
हफ़ीज़ जालंधरी
ओ दिल तोड़ के जाने वाले दिल की बात बताता जा
हफ़ीज़ जालंधरी
मिटने वाली हसरतें ईजाद कर लेता हूँ मैं
हफ़ीज़ जालंधरी
जल्वा-ए-हुस्न को महरूम-ए-तमाशाई कर
हफ़ीज़ जालंधरी
नन्ही जा सो जा
हबीब जालिब
और सब भूल गए हर्फ़-ए-सदाक़त लिखना
हबीब जालिब
और सब भूल गए हर्फ़ सदाक़त लिखना
हबीब जालिब
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