आदत Poetry (page 2)

जान उस की अदाओं पर निकलती ही रहेगी

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

आगही की दुआ

वहीद अख़्तर

इलाज बिल-मिस्ल

वहीद अहमद

खोए हुए सहरा तक ऐ बाद-ए-सबा जाना

वारिस किरमानी

मानता नहीं मेरी हुज्जतें भी करता है

उरूज ज़ेहरा ज़ैदी

आज अचानक फिर ये कैसी ख़ुशबू फैली यादों की

उनवान चिश्ती

मोहब्बत में शिकायत कर रहा हूँ

त्रिपुरारि

ये किस से आज बरहम हो गई है

तिलोकचंद महरूम

उठा उठा के तिरे नाज़ ऐ ग़म-ए-दुनिया

तारिक़ नईम

हवा में आए तो लौ भी न साथ ली हम ने

तारिक़ नईम

मैं दयार-ए-क़ातिलाँ का एक तन्हा अजनबी

तालिब जोहरी

ग़म-हा-ए-रोज़गार से फ़ुर्सत नहीं मुझे

सय्यद मोहम्मद असकरी आरिफ़

कल पहली बार उस से इनायत सी हो गई

सय्यद अनवार अहमद

जन्नत से निकाला न जहन्नुम से निकाला

सुहैल अख़्तर

किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी

सुदर्शन फ़ाकिर

ग़म से फ़ुर्सत नहीं कि तुझ से कहें

सुबहान असद

फिर सूरज ने शहर पे अपने क़हर का यूँ आग़ाज़ किया

सिराज अजमली

सू-ए-सहरा ही मुझे ले गई वहशत मेरी

श्याम सुंदर लाल बर्क़

मुँह से जो मिलाइए किसी को

शऊर बलगिरामी

सहरा में कड़ी धूप का डर होते हुए भी

शोज़ेब काशिर

जो सजता है कलाई पर कोई ज़ेवर हसीनों की

शोभा कुक्कल

अजब क्या है जो नौ-ख़ेज़ों ने सब से पहले जानें दीं

शिबली नोमानी

उलमा-ए-ज़िंदानी

शिबली नोमानी

क्या ग़रज़ लाख ख़ुदाई में हों दौलत वाले

ज़ौक़

अजीब आदत है बे-सबब इंतिज़ार करना

शीश मोहम्मद इस्माईल आज़मी

पुरखों से जो मिली है वो दौलत भी ले न जाए

शीन काफ़ निज़ाम

अब तेरे इंतिज़ार की आदत नहीं रही

शाज़िया अकबर

पता नहीं ये तमन्ना-ए-क़ुर्ब कब जागी

शारिक़ कैफ़ी

अजब लहजे में करते थे दर ओ दीवार बातें

शारिक़ कैफ़ी

वो दिन भी थे कि इन आँखों में इतनी हैरत थी

शारिक़ कैफ़ी

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