आदत Poetry (page 7)

इस क़दर बढ़ गई वहशत तिरे दीवाने की

बूम मेरठी

ख़िज़ाँ जब तक चली जाती नहीं है

बिस्मिल अज़ीमाबादी

मेरी एक बुरी आदत थी

बिलाल अहमद

महफ़िल वही मकान वही आदमी वही

बेख़ुद देहलवी

भूले से कहा मान भी लेते हैं किसी का

बेख़ुद देहलवी

पछताओगे फिर हम से शरारत नहीं अच्छी

बेख़ुद देहलवी

वो नज़र आईना-फ़ितरत ही सही

बाक़ी सिद्दीक़ी

रोज़-ए-वहशत है मिरे शहर में वीरानी की

बाक़ी अहमदपुरी

इक़रार किसी दिन है तो इंकार किसी दिन

बद्र वास्ती

तारीक उजालों में बे-ख़्वाब नहीं रहना

अज़रा वहीद

ये दिमाग़

अज़रा अब्बास

तुम्हें हँसते हुए देखा है जब से

अज़ीज़ लखनवी

मिरी मुश्किल अगर आसाँ बना देते तो अच्छा था

अतीक़ुर्रहमान सफ़ी

आवारा

असरार-उल-हक़ मजाज़

है मुअम्मा या कहानी इश्क़ है

असलम राशिद

कोशिश है गर उस की कि परेशान करेगा

असलम इमादी

देर तक चंद मुख़्तसर बातें

आसिम वास्ती

सामने उन के तड़प कर इस तरह फ़रियाद की

असग़र गोंडवी

इन अक़्ल के बंदों में आशुफ़्ता-सरी क्यूँ है

असद मुल्तानी

उस अब्र से भी क़बाहत ज़ियादा होती है

असअ'द बदायुनी

समुंदर से किसी लम्हे भी तुग़्यानी नहीं जाती

अरशद कमाल

तो मिरी ज़िंदगी बनोगी तुम

आरिफ़ इशतियाक़

मेरी नज़र के लिए कोई रिवायत न थी

अनवर सिद्दीक़ी

ये ख़ुद को देखते रहने की है जो ख़ू मुझ में

अनवर शऊर

'शुऊर' वक़्त पे दिल की दवा हुई होती

अनवर शऊर

शक नहीं है हमें उस बुत के ख़ुदा होने में

अनवर शऊर

अपने दिल की आदत है शहज़ादों वाली

अनवर सदीद

ज़हर लगता है ये आदत के मुताबिक़ मुझ को

अंजुम बाराबंकवी

मुझे कर के चुप कोई कहता है हँस कर

आनंद नारायण मुल्ला

बस कि थी रोने की आदत वस्ल में भी यार से

अमीरुल्लाह तस्लीम

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