मेरी एक बुरी आदत थी

मेरी एक बुरी आदत थी

तू मेरी आदत के हाथों कैसी ज़िच और कितनी दिक़ थी

जब हैरत की उँगली थामे तेरे साथ चला करता था

इक शीरीं मुस्कान की बेलें मेरे तन बूटे के ऊपर इस्तेहक़ाक़ से चढ़ती थीं

और इक लम्स का गाता पानी नस नस दीप जलाता था

लम्स के जुगनू और मुस्कान की तितली मेरे खिलौने थे

इन दोनों की दूरी सहना जीने जैसा मुश्किल था

इन को पल्लू में बाँधे तू जब भी दूर कहीं जाती थी

मैं विसवास की डोर से लिपटा पीछे पीछे आ जाता था

सब लोगों से, हर रस्ते से तेरा पता पूछा करता था

अब हैरत की उँगली थामे तू इक ऐसे देस गई है

जिस के सब बाज़ार और गलियाँ, सारे घर और सब चौबारे

गहरी धुँद में सर-बस्ता हैं, गुज़रे कल से पैवस्ता हैं

मैं इस धुँद के चौराहे पर नम आँखों को पोंछ रहा हूँ

रोते रोते सोच रहा हूँ

किस को रोकूँ किस से पूछूँ क्या मेरी माँ को देखा है?

इस रस्ते से हो के गई थी

अपनी एक बुरी आदत से कैसा ज़िच और कितना दिक़ हूँ

(964) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Meri Ek Buri Aadat Thi In Hindi By Famous Poet Bilal Ahmad. Meri Ek Buri Aadat Thi is written by Bilal Ahmad. Complete Poem Meri Ek Buri Aadat Thi in Hindi by Bilal Ahmad. Download free Meri Ek Buri Aadat Thi Poem for Youth in PDF. Meri Ek Buri Aadat Thi is a Poem on Inspiration for young students. Share Meri Ek Buri Aadat Thi with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.