अजीब ढंग से तक़सीम-ए-कार की उस ने
सो जिस को दिल न दिया उस को दिलरुबाई दी
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एक ख़्वाब
तड़ख़न
इक दिखावा रह गया बस दिल से वो चाहत गई
एक काँटे की खटक से दिल मिरा आबाद था
अजीब क़ैद थी जिस में बहुत ख़ुशी थी मुझे
मुश्किल
तिरी तलाश में निकला तो रास्ता हुआ मैं
रिस रहा है मुद्दत से कोई पहला ग़म मुझ में
नास्टैल्जिया
धुँद
मेरी एक बुरी आदत थी
अजल की फूँक मिरे कान में सुनाई दी