एक काँटे की खटक से दिल मिरा आबाद था
वो गया तो दिल से मेरे दर्द की राहत गई
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ज़मीं नई थी अनासिर की ख़ू बदलती थी
उलझ रहा था अभी ख़्वाब की फ़सील से मैं
मुश्किल
अजल की फूँक मिरे कान में सुनाई दी
दीवार-ए-काबा 19 नवम्बर 1989
धुँद
हमारी ख़ाक तबर्रुक समझ के ले जाओ
एक ख़्वाब
सोते में मुस्कुराते बच्चे को देख कर
मेरी एक बुरी आदत थी
सुना है मैं ने अज़िय्यत मज़ा भी देती है
इक दिखावा रह गया बस दिल से वो चाहत गई