बस कि थी रोने की आदत वस्ल में भी यार से
कह के अपना आप हाल-ए-आरज़ू रोने लगा
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ज़माने से निराला है उरूस-ए-फ़िक्र का जौबन
सुब्ह होती है शाम होती है
करो न देर जहाँ में जहाँ से आगे चलो
क्यूँ ख़राबात में लाफ़-ए-हमा-दानी वाइ'ज़
जाने दे सब्र ओ क़रार ओ होश को
शमीम-ए-यार न जब तक चमन में छू आए
कीजिए ऐसा जहाँ पैदा जहाँ कोई न हो
हम ने पाला मुद्दतों पहलू में हम कोई नहीं
फ़िक्र है शौक़-ए-कमर इश्क़-ए-दहाँ पैदा करूँ
दिल धड़कता है शब-ए-ग़म में कहीं ऐसा न हो
थक गए तुम हसरत-ए-ज़ौक़-ए-शहादत कम नहीं