जाने दे सब्र ओ क़रार ओ होश को
तू कहाँ ऐ बे-क़रारी जाएगी
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अहद के बअ'द लिए बोसे दहन के इतने
दास्तान-ए-शौक़-ए-दिल ऐसी नहीं थी मुख़्तसर
आस क्या अब तो उमीद-ए-नाउमीदी भी नहीं
कीजिए ऐसा जहाँ पैदा जहाँ कोई न हो
शमीम-ए-यार न जब तक चमन में छू आए
हम ने पाला मुद्दतों पहलू में हम कोई नहीं
थक गए तुम हसरत-ए-ज़ौक़-ए-शहादत कम नहीं
बस कि थी रोने की आदत वस्ल में भी यार से
कहने सुनने से मिरी उन की अदावत हो गई
नासेह ख़ता मुआफ़ सुनें क्या बहार में
कल मिरा था आज वो बुत ग़ैर का होने लगा