अहद के बअ'द लिए बोसे दहन के इतने
कि लब-ए-ज़ूद-पशीमाँ को मुकरने न दिया
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गर यही है पास-ए-आदाब-ए-सुकूत
इक आफ़त-ए-जाँ है जो मुदावा मिरे दिल का
चारासाज़-ए-ज़ख़्म-ए-दिल वक़्त-ए-रफ़ू रोने लगा
पारसाई उन की जब याद आएगी
कल मिरा था आज वो बुत ग़ैर का होने लगा
क्या ख़बर मुझ को ख़िज़ाँ क्या चीज़ है कैसी बहार
ख़ाली सही बला से तसल्ली तो दिल को हो
दिल धड़कता है शब-ए-ग़म में कहीं ऐसा न हो
तड़पती देखता हूँ जब कोई शय
दिमाग़ दे जो ख़ुदा गुलशन-ए-मोहब्बत में
आस क्या अब तो उमीद-ए-नाउमीदी भी नहीं