कीजिए ऐसा जहाँ पैदा जहाँ कोई न हो
ज़र्रा-ओ-अख़तर ज़मीन-ओ-आसमाँ कोई न हो
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दिमाग़ दे जो ख़ुदा गुलशन-ए-मोहब्बत में
फ़िक्र है शौक़-ए-कमर इश्क़-ए-दहाँ पैदा करूँ
ग़ैब से सहरा-नवरदों का मुदावा हो गया
नासेह ख़ता मुआफ़ सुनें क्या बहार में
क्या ख़बर मुझ को ख़िज़ाँ क्या चीज़ है कैसी बहार
आस क्या अब तो उमीद-ए-नाउमीदी भी नहीं
दिल धड़कता है शब-ए-ग़म में कहीं ऐसा न हो
चाहता हूँ पहले ख़ुद-बीनी से मौत आए मुझे
करो न देर जहाँ में जहाँ से आगे चलो
शमीम-ए-यार न जब तक चमन में छू आए
बस कि थी रोने की आदत वस्ल में भी यार से
गर यही है पास-ए-आदाब-ए-सुकूत