आग Poetry (page 27)

ज़मीं के साथ फ़लक के सफ़र में हम भी हैं

ग़यास मतीन

धूप का एहसास जाने क्यूँ उसे होता नहीं

ग़यास मतीन

हम ने जब चाहा कोई आग बुझाने आए

ग़यास अंजुम

अभी देखी कहाँ हैं आप ने सब ख़ूबियाँ मेरी

ग़ौसिया ख़ान सबीन

दिल की नय्या दो नैनों के मोह में डूबी जाए

ग़ौस सीवानी

उस शो'ला-रू से जब से मिरी आँख जा लगी

ग़मगीन देहलवी

पूछे है क्या वजूद ओ अदम अहल-ए-शौक़ का

ग़ालिब

तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो

ग़ालिब

रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए

ग़ालिब

न लेवे गर ख़स-ए-जौहर तरावत सब्ज़ा-ए-ख़त से

ग़ालिब

किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो

ग़ालिब

हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ मुझ से

ग़ालिब

दुखी दिलों में, दुखी साथियों में रहते थे

गौहर होशियारपुरी

नौमीद करे दिल को न मंज़िल का पता दे

फ़ुज़ैल जाफ़री

लफ़्ज़ों का साएबान बना लेने दीजिए

फ़ुज़ैल जाफ़री

उन का मंशा है न फैले ख़स-ओ-ख़ाशाक में आग

फ़ितरत अंसारी

हिण्डोला

फ़िराक़ गोरखपुरी

ये नर्म नर्म हवा झिलमिला रहे हैं चराग़

फ़िराक़ गोरखपुरी

रात भी नींद भी कहानी भी

फ़िराक़ गोरखपुरी

नर्म फ़ज़ा की करवटें दिल को दुखा के रह गईं

फ़िराक़ गोरखपुरी

कोई पैग़ाम-ए-मोहब्बत लब-ए-एजाज़ तो दे

फ़िराक़ गोरखपुरी

ग़म तिरा जल्वा-गह-ए-कौन-ओ-मकाँ है कि जो था

फ़िराक़ गोरखपुरी

बस्तियाँ ढूँढ रही हैं उन्हें वीरानों में

फ़िराक़ गोरखपुरी

अपने ग़म का मुझे कहाँ ग़म है

फ़िराक़ गोरखपुरी

मिलों के शहर में घटता हुआ दिन सोचता होगा

फ़ज़्ल ताबिश

इक तअल्लुक़ था जिसे आग लगा दी उस ने

फ़ाज़िल जमीली

वक़्त ने किस आग में इतना जलाया है मुझे

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

सराब-ए-जिस्म को सहरा-ए-जाँ में रख देना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

मुद्दतों के बाद फिर कुंज-ए-हिरा रौशन हुआ

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

छाँव को तकते धूप में चलते एक ज़माना बीत गया

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

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