आग Poetry (page 28)

बहुत जुमूद था बे-हौसलों में क्या करता

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

आँखों के ख़्वाब दिल की जवानी भी ले गया

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

कभी याद-ए-ख़ुदा कभी इश्क़-ए-बुताँ यूँही सारी उम्र गँवा बैठा

फ़य्याज़ तहसीन

हज़ारों साल की थी आग मुझ में

फ़े सीन एजाज़

समुंदर सर पटक कर मर रहा था

फ़े सीन एजाज़

मिरे घर की ईंटें चुरा ले गया वो

फ़े सीन एजाज़

आख़िरी लफ़्ज़

फ़ातिमा हसन

ज़मीं से रिश्ता-ए-दीवार-ओ-दर भी रखना है

फ़ातिमा हसन

मिरी ज़मीं पे लगी आप के नगर में लगी

फ़ातिमा हसन

ये दिल-कथा है अदाकार तेरे बस में नहीं

फ़रताश सय्यद

हम वफ़ादार हैं और इस से ज़ियादा क्या हों

फ़रताश सय्यद

दिल की ये आग बुझा दी किस ने

फ़र्रुख़ जाफ़री

अपने ही फ़न की आग में जलते रहे 'शमीम'

फ़ारूक़ शमीम

ग़ज़लों में अब वो रंग न रानाई रह गई

फ़ारूक़ शमीम

याद रखते किस तरह क़िस्से कहानी लोग थे

फ़ारूक़ शफ़क़

तोहमत-ए-सैर-ए-चमन हम पे लगी क्या न हुआ

फ़ारूक़ नाज़की

हिसार-ए-जिस्म से आगे निकल गया होता

फ़ारूक़ नाज़की

अपनी आग में

फ़ारूक़ मुज़्तर

क़ुर्बतें बढ़ गई निगाहों की

फ़ारूक़ मुज़्तर

महकते लफ़्ज़ों में शामिल है रंग-ओ-बू किस की

फ़ारूक़ बख़्शी

बिछड़ना मुझ से तो ख़्वाबों में सिलसिला रखना

फ़ारूक़ बख़्शी

ख़ाली नहीं है कोई यहाँ पर अज़ाब से

फ़ारूक़ अंजुम

जो बैठो सोचने हर ज़ख़्म-ए-दिल कसकता है

फ़ारूक़ अंजुम

जबीं का चाँद बनूँ आँख का सितारा बनूँ

फ़ारिग़ बुख़ारी

जब तक चराग़-ए-शाम-ए-तमन्ना जले चलो

फ़रहत शहज़ाद

ख़ुद-आगही

फ़रहत एहसास

बिछड़े घर का साया

फ़रहत एहसास

ये सारे ख़ूबसूरत जिस्म अभी मर जाने वाले हैं

फ़रहत एहसास

रूह को तो इक ज़रा सी रौशनी दरकार है

फ़रहत एहसास

मिला है जिस्म कि उस का गुमाँ मिला है मुझे

फ़रहत एहसास

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