आग Poetry (page 31)

ख़्वाब आँखों में निहाँ है अब भी

एहतिशाम अख्तर

ज़िंदगी इक आग है वो आग जलना चाहिए

एहसान जाफ़री

ज़ख़्मों को मेरे दिल के सजाओ तो बने बात

एहसान जाफ़री

शायद अभी बाक़ी है कुछ आग मोहब्बत की

एहसान दरबंगावी

दमक रहा है जो नस नस की तिश्नगी से बदन

एहसान दानिश

न सियो होंट न ख़्वाबों में सदा दो हम को

एहसान दानिश

जबीं की धूल जिगर की जलन छुपाएगा

एहसान दानिश

मंज़र है अभी दूर ज़रा हद्द-ए-नज़र से

डॉ. पिन्हाँ

यूँ दीदा-ए-ख़ूँ-बार के मंज़र से उठा मैं

दिलावर अली आज़र

मैं सुर्ख़ फूल को छू कर पलटने वाला था

दिलावर अली आज़र

ख़ुद अपनी आग में सारे चराग़ जलते हैं

दिलावर अली आज़र

दूर के एक नज़ारे से निकल कर आई

दिलावर अली आज़र

मशवरा

दाऊद ग़ाज़ी

इल्म

दाऊद ग़ाज़ी

अर्ज़-ओ-समा कहाँ तिरी वुसअ'त को पा सके

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

नज़्म-गो के लिए मशवरा

दानियाल तरीर

ये मो'जिज़ा भी दिखाती है सब्ज़ आग मुझे

दानियाल तरीर

नई नई सूरतें बदन पर उजालता हूँ

दानियाल तरीर

कोई सिवा-ए-बदन है न है वरा-ए-बदन

दानियाल तरीर

ख़्वाब-कारी वही कमख़्वाब वही है कि नहीं

दानियाल तरीर

खंडर ये फिर बसाने का इरादा ही नहीं था

दानियाल तरीर

गया कि सैल-ए-रवाँ का बहाव ऐसा था

दानियाल तरीर

एक बुझाओ एक जलाओ ख़्वाब का क्या है

दानियाल तरीर

चश्म-ए-वा ही न हुई जल्वा-नुमा क्या होता

दानियाल तरीर

ब-तर्ज़-ए-ख़्वाब सजानी पड़ी है आख़िर-कार

दानियाल तरीर

अजब रंग-ए-तिलस्म-ओ-तर्ज़-ए-नौ है

दानियाल तरीर

ये मज़ा था दिल-लगी का कि बराबर आग लगती

दाग़ देहलवी

ये बात बात में क्या नाज़ुकी निकलती है

दाग़ देहलवी

वो ज़माना नज़र नहीं आता

दाग़ देहलवी

पुकारती है ख़मोशी मिरी फ़ुग़ाँ की तरह

दाग़ देहलवी

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