आंखें Poetry (page 20)

जान जाने को है और रक़्स में परवाना है

साग़र ख़य्यामी

पैमाना तिरे लब हैं आँखें तिरी मय-ख़ाना

सागर जलालाबादी

कोई आबाद मंज़िल हम जो वीराँ देख लेते हैं

सफ़ी लखनवी

जिस वक़्त आँखें ख़्वाब आईना दिल होता है

सफ़दर सिद्दीक़ रज़ी

इजाज़त

सईदुद्दीन

उज़्र हवा ने क्या रक्खा है

सईद क़ैस

जब बीनाई सावन ने चुराई हो

सईद अहमद

हम ज़ात से हम कलामी और फ़िराक़

सईद अहमद

हर शख़्स को ऐसे देखता हूँ

सादिक़ नसीम

बचपन की आँखें

सादिक़

वो पीपल के तले टूटी हुई मेहराब का मंज़र

सदफ़ जाफ़री

रास्ते फैले हुए जितने भी थे पत्थर के थे

सदफ़ जाफ़री

आग थी ऐसी कि अरमाँ जल गए

सदफ़ जाफ़री

नींद आई ही नहीं हम को न पूछो कब से

सदा अम्बालवी

माना दुख को थोड़ा कम कर देती हैं

सचिन शालिनी

वाक़िफ़ ख़ुद अपनी चश्म-ए-गुरेज़ाँ से कौन है

साबिर ज़फ़र

किसी तौर हो न पिन्हाँ तिरा रंग-ए-रू-सियाही

साबिर ज़फ़र

अक्स पानी में अगर क़ैद किया जा सकता

साबिर ज़फ़र

अख़ीर-ए-शब सर्द राख चूल्हे की झाड़ लाएँ

साबिर

नया शगूफ़ा इशारा-ए-यार पर खिला है

सबा नक़वी

आ जा अँधेरी रातें तन्हा बिता चुका हूँ

सबा अख़्तर

अजल होती रहेगी इश्क़ कर के मुल्तवी कब तक

सबा अकबराबादी

सुना भी कभी माजरा दर्द-ओ-ग़म का किसी दिल-जले की ज़बानी कहो तो

साइल देहलवी

ख़िज़ाँ का जो गुलशन से पड़ जाए पाला

साइल देहलवी

तुम ने कैसा ये राब्ता रक्खा

सादुल्लाह शाह

हज़ार रंग जलाल-ओ-जमाल के देखे

रूही कंजाही

अब तो यूँ लब पे मिरे हर्फ़-ए-सदाक़त आए

रूही कंजाही

चहार सम्त से कल तक जो घर दमकता था

रिज़्वानुल्लाह

ज़िद हमारी दुआ से होती है

रियाज़ ख़ैराबादी

ये सीधे जो अब ज़ुल्फ़ों वाले हुए हैं

रियाज़ ख़ैराबादी

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