आंखें Poetry (page 18)

सफ़र से आए तो फिर इक सफ़र नसीब हुआ

सलीम सरफ़राज़

वहशत निगार लम्हे आहू क़तार लम्हे

सलीम मुहीउद्दीन

इधर उधर से किताब देखूँ

सलीम मुहीउद्दीन

वो आँखें जिन से मुलाक़ात इक बहाना हुआ

सलीम कौसर

तुझ से बढ़ कर कोई प्यारा भी नहीं हो सकता

सलीम कौसर

कहीं आँखें कहीं बाज़ू कहीं से सर निकल आए

सलीम फ़िगार

बस लौट आना

सलीम फ़िगार

कहीं आँखें कहीं बाज़ू कहीं से सर निकल आए

सलीम फ़िगार

हर-चंद मिरा शौक़-ए-सफ़र यूँ न रहेगा

सलीम फ़राज़

ख़ुद अपनी दीद से अंधी हैं आँखें

सलीम अहमद

आँसुओं से तू है ख़ाली दर्द से आरी हूँ मैं

सलीम अहमद

आँखें

सलीम अहमद

नया मज़मूँ किताब-ए-ज़ीस्त का हूँ

सलीम अहमद

मुझे इन आते जाते मौसमों से डर नहीं लगता

सलीम अहमद

ख़ैर का तुझ को यक़ीं है और उस को शर का है

सलीम अहमद

बज़्म आख़िर हुई शम्ओं' का धुआँ बाक़ी है

सलीम अहमद

बैठे हैं सुनहरी कश्ती में और सामने नीला पानी है

सलीम अहमद

अहल-ए-दिल ने इश्क़ में चाहा था जैसा हो गया

सलीम अहमद

कभी कभी अर्ज़-ए-ग़म की ख़ातिर हम इक बहाना भी चाहते हैं

सलाम मछली शहरी

अंदेशा

सलाम मछली शहरी

कभी कभी अर्ज़-ए-ग़म की ख़ातिर हम इक बहाना भी चाहते हैं

सलाम मछली शहरी

बहार आ कर जो गुलशन में वो गाएँ

सख़ी लख़नवी

मोहब्बत की मौत

सज्जाद ज़हीर

टूट पड़ती थीं घटाएँ जिन की आँखें देख कर

सज्जाद बाक़र रिज़वी

लफ़्ज़ जब कोई न हाथ आया मआनी के लिए

सज्जाद बाक़र रिज़वी

ख़्वाहिश में सुकूँ की वही शोरिश-तलबी है

सज्जाद बाक़र रिज़वी

दिल की बिसात पे शाह प्यादे कितनी बार उतारोगे

सज्जाद बाक़र रिज़वी

चाहत जी का रोग है प्यारे जी को रोक लगाओ क्यूँ

सज्जाद बाक़र रिज़वी

रंग बिरंगे सपनों जैसी आँखें तेरी

साजिद हमीद

कुछ बे-नाम तअल्लुक़ जिन को नाम अच्छा सा देने में

साइमा असमा

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