कहीं आँखें कहीं बाज़ू कहीं से सर निकल आए
अँधेरा फैलते ही हर तरफ़ से डर निकल आए
Anwar Masood
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Rahat Indori
Parveen Shakir
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चमकती ओस की सूरत गुलों की आरज़ू होना
लफ़्ज़ ले कर ख़याल की वुसअत
दीद के बदले सदा दीदा-ए-तर रक्खा है
अँधेरे को निगलता जा रहा हूँ
शाख़-दर-शाख़ तिरी याद की हरियाली है
ग़मों की आग पे सब ख़ाल-ओ-ख़द सँवारे गए
फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ में शाख़ से पत्ता निकाल दे
वो चाँद टूट गया जिस से रात रौशन थी
आख़िरी पड़ाव
शाम ढलते ही तिरे ध्यान में आ जाता हूँ