ख़ुद अपनी दीद से अंधी हैं आँखें
ख़ुद अपनी गूँज से बहरा हुआ हूँ
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शायद कोई बंदा-ए-ख़ुदा आए
कौन तू है कौन मैं कैसी वफ़ा
माने तो किस की दीवाना माने
वो लोग भी हैं जो मौजों से डर गए होंगे
दिया
ख़ुश-नुमा लफ़्ज़ों की रिश्वत दे के राज़ी कीजिए
ज़िंदगी मौत के पहलू में भली लगती है
कोई नहीं जो पता दे दिलों की हालत का
वस्ल ओ फ़स्ल की हर मंज़िल में शामिल इक मजबूरी थी
मुझे गिला न किसी संग का न आहन का
हम ने शिकवा कभी किया न करें
नहीं रहा मैं तिरे रास्ते का पत्थर भी