आंखें Poetry (page 8)

कब अपनी ख़ुशी से वो आए हुए हैं

तअशशुक़ लखनवी

जोश पर थीं सिफ़त-ए-अब्र-ए-बहारी आँखें

तअशशुक़ लखनवी

अपनी फ़रहत के दिन ऐ यार चले आते हैं

तअशशुक़ लखनवी

तन-आसानी नहीं जाती रिया-कारी नहीं जाती

सय्यद ज़मीर जाफ़री

रोने की ये शिद्दत है कि घबरा गईं आँखें

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

रेज़ा रेज़ा जैसे कोई टूट गया है मेरे अंदर

सय्यद शकील दस्नवी

झील आँखें थीं गुलाबों सी जबीं रखता था

सय्यद सग़ीर सफ़ी

बदल गए हो

सय्यद मुबारक शाह

हो गया पाएमाल आँखों में

सय्यद मोहम्मद असकरी आरिफ़

मैं एक आँसू इकट्ठा कर रहा हूँ

सय्यद काशिफ़ रज़ा

था मगर इतना ज़ियादा तो जुनूँ-ख़ेज़ न था

सय्यद काशिफ़ रज़ा

मसर्रत में भी है पिन्हाँ अलम यूँ भी है और यूँ भी

सय्यद हामिद

ये आँख तंज़ न हो ज़ख़्म-ए-दिल हरा न लगे

सय्यद अमीन अशरफ़

लरज़ रहा था फ़लक अर्ज़-ए-हाल ऐसा था

सय्यद अमीन अशरफ़

कितने जुग बीत गए फिर भी न भूला जाए

सय्यद अहमद शमीम

सूने सूने से फ़लक पर इक घटा बनती हुई

स्वप्निल तिवारी

मुँह अँधेरे तेरी यादों से निकलना है मुझे

स्वप्निल तिवारी

मिली है राहत हमें सफ़र से

स्वप्निल तिवारी

मिली है राहत हमें सफ़र से

स्वप्निल तिवारी

दिन के पहले पहर में ही अपना बिस्तर छोड़ कर

स्वप्निल तिवारी

दिन के पहले पहर मैं ही अपना बिस्तर छोड़ कर

स्वप्निल तिवारी

ऐसी अच्छी सूरत निकली पानी की

स्वप्निल तिवारी

बुलबुल ओ परवाना

सुरूर जहानाबादी

मेहर-ओ-माह भी लर्ज़ां हैं फ़ज़ा की बाँहों में

सुरूर बाराबंकवी

ऐसी ख़ुशबू तू मुझे आज मयस्सर कर दे

सुमन ढींगरा दुग्गल

जहाँ-दार जितनी भी साज़िश करेगा

सुलतान सुबहानी

अपने ही टूटे हुए ख़्वाबों को दिल चुनता भी है

सुल्तान सब्र वानी

उस की जानिब देखते थे और सब ख़ामोश थे

सुलतान रशक

ज़ंग-आलूद ज़बाँ तक पहूँची होंटों की मिक़राज़

सुल्तान अख़्तर

कुछ डूबता उभरता सा रहता है सामने

सुल्तान अख़्तर

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