आंखें Poetry (page 9)

जिस को क़रीब पाया उसी से लिपट गए

सुल्तान अख़्तर

हरीफ़-ए-वक़्त हूँ सब से जुदा है राह मिरी

सुल्तान अख़्तर

हंगामों के क़हत से खिड़की दरवाज़े मबहूत

सुल्तान अख़्तर

डीप-फ़्रीज़

सुलैमान अरीब

हम ने तो मूँद लीं आँखें ही तिरी दीद के बाद

सुहैल अहमद ज़ैदी

पेड़ ऊँचा है मगर ज़ेर-ए-ज़मीं कितना है

सुहैल अहमद ज़ैदी

दीद का इसरार मूसा लन-तरानी कोह-ए-तूर

सुग़रा आलम

ऐ हमराज़

सूफ़िया अनजुम ताज

बंद हो जाए मिरी आँख अगर

सूफ़ी तबस्सुम

हुस्न मजबूर-ए-जफ़ा है शायद

सूफ़ी तबस्सुम

बुझी बुझी सी सितारों की रौशनी है अभी

सूफ़ी तबस्सुम

रग-ए-जाँ में समा जाती हो जानाँ

सुबहान असद

तमन्नाएँ ठिकाना चाहती हैं

सोनरूपा विशाल

शायद तुझ से मिलने की गुंजाइश है

सोनरूपा विशाल

समझते थे ,वो समझाया गया है

सोनरूपा विशाल

अपनी नज़रों में हारना कब तक

सोनरूपा विशाल

सुलगते दश्त का मंज़र हुई हैं

सिया सचदेव

क़िस्मत से लड़ती हैं निगाहें

सिराज लखनवी

मुझे अब हवा-ए-चमन नहीं कि क़फ़स में गूना क़रार है

सिराज लखनवी

मिला-दिला सही इक ख़ुश्क हार बाक़ी है

सिराज लखनवी

आँखों में आज आँसू फिर डबडबा रहे हैं

सिराज लखनवी

नींद सीं खुल गईं मिरी आँखें सो देखा यार कूँ

सिराज औरंगाबादी

तुम्हारी ज़ुल्फ़ का हर तार मोहन

सिराज औरंगाबादी

तुझ ज़ुल्फ़ की शिकन है मानिंद-ए-दाम गोया

सिराज औरंगाबादी

सर्व-ए-गुलशन पर सुख़न उस क़द का बाला हो गया

सिराज औरंगाबादी

सनम ख़ुश तबईयाँ सीखे हो तुम किन किन ज़रीफ़ों सीं

सिराज औरंगाबादी

सनम जब चीरा-ए-ज़र-तार बाँधे

सिराज औरंगाबादी

ख़ूब बूझा हूँ मैं उस यार कूँ कुइ क्या जाने

सिराज औरंगाबादी

इस लब कूँ कब पसंद हैं रस्मी कटोरियाँ

सिराज औरंगाबादी

तअ'ल्लुक़ की ना-जाएज़ तजावुज़ात

सिदरा सहर इमरान

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