आंखें Poetry (page 7)

परी उड़ जाएगी और राजधानी ख़त्म होगी

तौक़ीर तक़ी

आ गई धूप मिरी छाँव के पीछे पीछे

तौक़ीर रज़ा

फिर तिरे हिज्र के जज़्बात ने अंगड़ाई ली

तसनीम फ़ारूक़ी

किसी दयार किसी दश्त में सबा ले चल

तस्लीम इलाही ज़ुल्फ़ी

आज इस वक़्त वो जब याद आया

तारिक़ राशीद दरवेश

सिसकती मज़लूमियत के नाम

तारिक़ क़मर

लहु लहु आँखें

तारिक़ क़मर

ख़िज़ाँ-नसीबों पे बैन करती हुई हवाएँ

तारिक़ क़मर

जौन-एलिया से आख़री मुलाक़ात

तारिक़ क़मर

इस रात किसी और क़लम-रौ में कहीं था

तारिक़ नईम

रात के पड़ाव पर

तनवीर अंजुम

आज़ादी से नींदों तक

तनवीर अंजुम

आसमान-ए-यास पर खोया सितारा ढूँढना

तनवीर अंजुम

सावन-रुत और उड़ती पुर्वा तेरे नाम

ताजदार आदिल

चेहरा देखें तेरे होंट और पलकें देखें

तहज़ीब हाफ़ी

गोशे बदल बदल के हर इक रात काट दी

ताहिर फ़राज़

आँखों में है कैसा पानी बंद है क्यूँ आवाज़

ताहिर अदीम

शहर को चोट पे रखती है गजर में कोई चीज़

तफ़ज़ील अहमद

घने अरमान गाढ़ी आरज़ू करने से मिलता है

तफ़ज़ील अहमद

क़िस्सा-ए-शब

ताबिश कमाल

कहाँ आ गई हो

ताबिश कमाल

ख़्वाहिशें और ख़ून

तबस्सुम काश्मीरी

क़िस्मत में क्या है देखें जीते बचें कि मर जाएँ

ताबाँ अब्दुल हई

ग़ज़ालों को तिरी आँखें से कुछ निस्बत नहीं हरगिज़

ताबाँ अब्दुल हई

तेरी आँखें बड़ी सी प्यारी हैं

ताबाँ अब्दुल हई

सुन फ़स्ल-ए-गुल ख़ुशी हो गुलशन में आइयाँ हैं

ताबाँ अब्दुल हई

ख़ूबाँ जो पहनते हैं निपट तंग चोलियाँ

ताबाँ अब्दुल हई

हुए हैं जा के आशिक़ अब तो हम उस शोख़ चंचल के

ताबाँ अब्दुल हई

ग़म में रोता हूँ तिरे सुब्ह कहीं शाम कहीं

ताबाँ अब्दुल हई

महफ़िल से उठाने के सज़ा-वार हमीं थे

तअशशुक़ लखनवी

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