आंखें Poetry (page 5)

जब हुस्न-ए-बे-मिसाल पर इतना ग़ुरूर था

यगाना चंगेज़ी

बैठा हूँ पाँव तोड़ के तदबीर देखना

यगाना चंगेज़ी

दश्त-ए-जुनूँ में आ गईं आँखें जो उन की याद

वज़ीर अली सबा लखनवी

रंग है ऐ साक़ी-ए-सरशार क़ैसर-बाग़ में

वज़ीर अली सबा लखनवी

किस मुँह से कहें गुनाह क्या हैं

वज़ीर अली सबा लखनवी

अब तो आराम करें सोचती आँखें मेरी

वज़ीर आग़ा

तुझे भी याद तो होगा

वज़ीर आग़ा

पेश-गोई

वज़ीर आग़ा

इक बे-अंत वजूद

वज़ीर आग़ा

दुख मैले आकाश का

वज़ीर आग़ा

दीवार-ए-गिर्या

वज़ीर आग़ा

न आँखें ही झपकता है न कोई बात करता है

वज़ीर आग़ा

धूप के साथ गया साथ निभाने वाला

वज़ीर आग़ा

वो जिस की जुस्तुजू-ए-दीद में पथरा गईं आँखें

वासिफ़ देहलवी

तुम्हारा नाम लिखने की इजाज़त छिन गई जब से

वसी शाह

हज़ारों मौसमों की हुक्मरानी है मिरे दिल पर

वसी शाह

हर इक मुफ़लिस के माथे पर अलम की दास्तानें हैं

वसी शाह

तो मैं भी ख़ुश हूँ कोई उस से जा के कह देना

वसी शाह

समुंदर में उतरता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं

वसी शाह

बहुत से ख़्वाब देखोगे तो आँखें

वसीम बरेलवी

आज जिस पर ये पर्दा-दारी है

वसीम अकरम

खेल मौजों का ख़तरनाक सही क्या मैं इस खेल से डर जाऊँगा

वाक़िफ़ राय बरेलवी

तिरी नज़र में तिरे मा-सिवा नहीं होगा

वक़ार वासिक़ी

सलीक़ा बोलने का हो तो बोलो

वक़ार मानवी

तुम जानते हो किस लिए वो मुझ से गया लड़

वलीउल्लाह मुहिब

मिल उस परी से क्या क्या हुआ दिल

वलीउल्लाह मुहिब

किया बाग़-ए-जहाँ में नाम उन का सर्व कह कह कर

वलीउल्लाह मुहिब

काफ़िर हुए सनम हम दीं-दार तेरी ख़ातिर

वलीउल्लाह मुहिब

बुलबुल वो गुल है ख़्वाब में तू गा के मत जगा

वलीउल्लाह मुहिब

ब-तस्ख़ीर-बुताँ तस्बीह क्यूँ ज़ाहिद फिराते हैं

वलीउल्लाह मुहिब

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