आंखें Poetry (page 4)

दार-उल-अमान के दरवाज़े पर

ज़ाहिद मसूद

ज़ख़्मी ख़्वाबों की तीसरी दुनिया

ज़ाहिद इमरोज़

काएनाती गर्द में बरसात की एक शाम

ज़ाहिद इमरोज़

एक दुआ

ज़ाहिद डार

यूँ ही हम दर्द अपना खो रहे हैं

ज़हीर रहमती

वो इक झलक दिखा के जिधर से निकल गया

ज़हीर काश्मीरी

ये सब कहने की बातें हैं हम उन को छोड़ बैठे हैं

ज़हीर देहलवी

बुतों से बच के चलने पर भी आफ़त आ ही जाती है

ज़हीर देहलवी

खुल गईं आँखें कि जब दुनिया का सच हम पर खुला

ज़फ़र कलीम

बख़्त जागे तो जहाँ-दीदा सी हो जाती है

ज़फ़र कलीम

सहरा का सफ़र था तो शजर क्यूँ नहीं आया

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

ये साफ़ लगता है जैसी कि उस की आँखें थीं

ज़फ़र इक़बाल

ये भी मुमकिन है कि आँखें हों तमाशा ही न हो

ज़फ़र इक़बाल

वो एक तरहा से इक़रार करने आया था

ज़फ़र इक़बाल

तक़ाज़ा हो चुकी है और तमन्ना हो रहा है

ज़फ़र इक़बाल

सिर्फ़ आँखें थीं अभी उन में इशारे नहीं थे

ज़फ़र इक़बाल

कुछ उस ने सोचा तो था मगर काम कर दिया था

ज़फ़र इक़बाल

अभी आँखें खुली हैं और क्या क्या देखने को

ज़फ़र इक़बाल

साहिल पर दरिया की लहरें सज्दा करती रहती हैं

ज़फर इमाम

धूप निकली कभी बादल से ढकी रहती है

ज़फर इमाम

ये जो तेरी आँखों में मा'नी-ए-वफ़ा सा है

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

सिरहाने बेबसी रोती रही है

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

तन्हाई की क़ब्र से उठ कर मैं सड़कों पर खो जाता हूँ

यूसुफ़ आज़मी

भीगी पलकें शौक़ का आलम वक़्त का धारा क्या नहीं देखा

यावर अब्बास

पलकों पे रुका क़तरा-ए-मुज़्तर की तरह हूँ

यासीन अफ़ज़ाल

मसअलों की भीड़ में इंसाँ को तन्हा कर दिया

याक़ूब यावर

चला आँखों से जब कश्ती में वो महबूब जाता है

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

वाइज़ की आँखें खुल गईं पीते ही साक़िया

यगाना चंगेज़ी

दीवाना-वार दौड़ के कोई लिपट न जाए

यगाना चंगेज़ी

वहशत थी हम थे साया-ए-दीवार-ए-यार था

यगाना चंगेज़ी

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