आंसू Poetry (page 7)

बन कर जो अंजान गए हैं

सय्यद बासित हुसैन माहिर लखनवी

इतना देखा चलते चलते

सय्यद अहसन जावेद

उस के होंटों पर सुर महका करते हैं

स्वप्निल तिवारी

तुम से इक दिन कहीं मिलेंगे हम

स्वप्निल तिवारी

फ़स्ल-ए-गुल क्या कर गई आशुफ़्ता सामानों के साथ

सुरूर बाराबंकवी

निगाहों ने कई सपने बुने हैं

सुनील कुमार जश्न

तुझ में सब मंज़र महफ़ूज़

सुलतान सुबहानी

मौसम-ए-गुल कुंज-ए-गुलशन निकहत-ए-गेसू न हो

सुलतान रशक

कुछ नहीं है तो ये अंदेशा ये डर कैसा है

सुलेमान ख़ुमार

तिरा दिल तो नहीं दिल की लगी हूँ

सुलैमान अरीब

भेस क्या क्या न ज़माने में बनाए हम ने

सुलैमान अरीब

साज़ के मौजों पे नग़्मों की सवारी मैं थी

सूफ़िया अनजुम ताज

खुल के रोने की तमन्ना थी हमें

सूफ़ी तबस्सुम

जब भी दो आँसू निकल कर रह गए

सूफ़ी तबस्सुम

सौ बार चमन महका सौ बार बहार आई

सूफ़ी तबस्सुम

किस ने ग़म के जाल बिखेरे

सूफ़ी तबस्सुम

जब भी दो आँसू निकल कर रह गए

सूफ़ी तबस्सुम

दिल तो रोता रहे ओर आँख से आँसू न बहे

सुदर्शन फ़ाकिर

ज़िंदगी तुझ को जिया है कोई अफ़्सोस नहीं

सुदर्शन फ़ाकिर

कुछ तो दुनिया की इनायात ने दिल तोड़ दिया

सुदर्शन फ़ाकिर

तुम ने महसूस कहाँ मेरी ज़रूरत की है

सिया सचदेव

न पी सको तो इधर आओ पोंछ दूँ आँसू

सिराज लखनवी

आँखों पर अपनी रख कर साहिल की आस्तीं को

सिराज लखनवी

क़िस्मत से लड़ती हैं निगाहें

सिराज लखनवी

मदद ऐ ख़याल-ए-माज़ी ज़रा आइना उठाना

सिराज लखनवी

दुनिया का न उक़्बा का कोई ग़म नहीं सहते

सिराज लखनवी

बे-समझे-बूझे मोहब्बत की इक काफ़िर ने ईमान लिया

सिराज लखनवी

अब न कुछ सुनना न सुनाना रात गुज़रती जाती है

सिराज लखनवी

अब इतनी अर्ज़ां नहीं बहारें वो आलम-ए-रंग-ओ-बू कहाँ है

सिराज लखनवी

आँखों में आज आँसू फिर डबडबा रहे हैं

सिराज लखनवी

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