बादल Poetry (page 15)

हमें देखा न कर उड़ती नज़र से

बकुल देव

होते होते चश्म से आज अश्क-बारी रह गई

ज़फ़र

क़दमों से इतना दूर किनारा कभी न था

बद्र-ए-आलम ख़लिश

गौरय्यों ने जश्न मनाया मेरे आँगन बारिश का

बद्र-ए-आलम ख़लिश

नग़्मे तड़प रहे हैं दिल-ए-बे-क़रार में

बीएस जैन जौहर

ग़ुबार-ए-जाँ पस-ए-दीवार-ओ-दर समेटा है

अज़रा वहीद

समझ के रस्ता इधर से गुज़रने वालों ने

अज़लान शाह

हर आईना इक अक्स-ए-नौ ढूँडता है

अज़ीज़ तमन्नाई

बढ़ने दे अभी कशमकश-ए-तार-ए-नफ़स और

अज़ीज़ तमन्नाई

फ़स्ल-ए-राएगाँ

अज़ीज़ क़ैसी

अहद-नामा-ए-इमराेज़

अज़ीज़ क़ैसी

दुआएँ माँगी हैं साक़ी ने खोल कर ज़ुल्फ़ें

अज़ीज़ लखनवी

आतिश-ए-ख़ामोश

अज़ीज़ लखनवी

वो अब्र घिरा झूम के रहमत के दिन आए

अज़ीज़ हैदराबादी

नरमी हवा की मौज-ए-तरब-ख़ेज़ अभी से है

अज़ीज़ हामिद मदनी

न फ़ासले कोई निकले न क़ुर्बतें निकलीं

अज़ीज़ हामिद मदनी

मिरी आँखें गवाह-ए-तल'अत-ए-आतिश हुईं जल कर

अज़ीज़ हामिद मदनी

ख़त्म हुई शब-ए-वफ़ा ख़्वाब के सिलसिले गए

अज़ीज़ हामिद मदनी

करम का और है इम्काँ खुले तो बात चले

अज़ीज़ हामिद मदनी

दरीचे सो गए शब जागती है

अज़हर नैयर

डरे हुए हैं सभी लोग अब्र छाने से

अज़हर फ़राग़

सफ़र में फ़ासलों के साथ बादबान खो दिया

अय्यूब ख़ावर

चराग़-ए-क़ुर्ब की लौ से पिघल गया वो भी

अय्यूब ख़ावर

अब तो आए नज़र में जो भी हो

अय्यूब ख़ावर

मिरे दिल में ख़ुश्बू बसी थी जो वो मकान अपना बदल गई

अतीक़ अंज़र

दिलों के दर्द जगा ख़्वाहिशों के ख़्वाब सजा

अता शाद

शहर-ए-निगार

असरार-उल-हक़ मजाज़

रात और रेल

असरार-उल-हक़ मजाज़

पर्दा और इस्मत

असरार-उल-हक़ मजाज़

नज़्र-ए-अलीगढ़

असरार-उल-हक़ मजाज़

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