बादल Poetry (page 16)

लखनऊ

असरार-उल-हक़ मजाज़

ख़ाना-ब-दोश

असरार-उल-हक़ मजाज़

रुख़्सत ऐ हम-सफ़रो शहर-ए-निगार आ ही गया

असरार-उल-हक़ मजाज़

परदेसी का ख़त

असरा रिज़वी

रास्ता सुनसान था तो मुड़ के देखा क्यूँ नहीं

असलम आज़ाद

ज़र्द पत्तों पे मिरा नाम लिखा है उस ने

अशफ़ाक़ अंजुम

ग़म तो था फिर भी बे-शुमार न था

अशफ़ाक़ रहबर

जला जला के दिए पास पास रखते हैं

असग़र मेहदी होश

रवाँ है क़ाफ़िला-ए-जुस्तुजू किधर मेरा

असद जाफ़री

उस अब्र से भी क़बाहत ज़ियादा होती है

असअ'द बदायुनी

मिरे शजर तुझे मौसम नया बनाते रहें

असअ'द बदायुनी

यक़ीन-ए-सुब्ह-ए-चमन है कितना शुऊर-ए-अब्र-ए-बहार क्या है

अर्शी भोपाली

ख़ुदी के ज़ो'म में ऐसा वो मुब्तला हुआ है

अरशद महमूद अरशद

सिंदूर उस की माँग में देता है यूँ बहार

अरशद अली ख़ान क़लक़

बे-अब्र रिंद पीते नहीं वाइ'ज़ो शराब

अरशद अली ख़ान क़लक़

डोरा नहीं है सुरमे का चश्म-ए-सियाह में

अरशद अली ख़ान क़लक़

बाक़ी न हुज्जत इक दम-ए-इसबात रह गई

अरशद अली ख़ान क़लक़

बराए-नाम सही कोई मेहरबान तो है

अक़ील शादाब

बाइ'स-ए-अर्ज़-ए-हुनर कर्ब-ए-निहानी निकला

अक़ील शादाब

मुहीत-ए-रहमत है जोश-अफ़ज़ा हुई है अब्र-ए-सख़ा की आमद

अनवरी जहाँ बेगम हिजाब

रुख़ से पर्दा उठा दे ज़रा साक़िया बस अभी रंग-ए-महफ़िल बदल जाएगा

अनवर मिर्ज़ापुरी

बस यूँही इक वहम सा है वाक़िआ ऐसा नहीं

अनवर मसूद

ज़ुल्फ़ को अब्र का टुकड़ा नहीं लिख्खा मैं ने

अनवर जलालपुरी

जब तक फ़सील-ए-जिस्म का दर खुल न जाएगा

अंजुम ख़लीक़

कुछ तो नया किया है हवा ने पता करो

अंजुम बाराबंकवी

हम से क्या ख़ाक के ज़र्रों ही से पूछा होता

अंजुम आज़मी

ये मय-कश कौन बा-सद लग़्ज़िश-ए-मस्ताना आता है

अम्न लख़नवी

उमीदें तो वाबस्ता हैं अब्र-ए-तर से

अम्न लख़नवी

सेल्फ़ मेड लोगों का अलमिया

अमजद इस्लाम अमजद

ऐ हिज्र-ज़दा शब

अमजद इस्लाम अमजद

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