उमीदें तो वाबस्ता हैं अब्र-ए-तर से
उमीदें तो वाबस्ता हैं अब्र-ए-तर से
जो बरसे तो बरसे न बरसे न बरसे
जहाँ क्या है और इस की रंगीनियाँ क्या
ये पूछो किसी दीदा-ए-हक़-निगर से
ज़बान ओ दहन से जो खुलते नहीं हैं
वो खुल जाते हैं राज़ अक्सर नज़र से
मिरा रास्ता कारवाँ से अलग है
गुज़रना है इक मंज़िल-ए-पुर-ख़तर से
ये है 'अम्न' इंसाँ की पस्ती सी पस्ती
गुनह से बचा भी तो दोज़ख़ के डर से
(746) Peoples Rate This