वो अब्र घिरा झूम के रहमत के दिन आए
पीने के पिलाने के मसर्रत के दिन आए
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दर्द सहने के लिए सदमे उठाने के लिए
कोई रुस्वा कोई सौदाई है
शोख़ी उफ़-रे तिरी नज़र की
हुस्न है दाद-ए-ख़ुदा इश्क़ है इमदाद-ए-ख़ुदा
बहुत कुछ देखना है आगे आगे
क्यूँ ख़फ़ा हो क्यूँ इधर आते नहीं
निगाह-ए-नाज़ में हया भी है
नस्रीं में ये महक है न ये नस्तरन में है
नारा-ए-तकबीर भी ज़ाहिद निसार-ए-नग़मा है
मोहब्बत का मुझे दावा ही क्या है
अभी कुछ है अभी कुछ है अभी कुछ
ज़ालिम तिरे वादों ने दीवाना बना रक्खा