अजनबी Poetry (page 10)

अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ

बशीर बद्र

ख़बर कुछ ऐसी उड़ाई किसी ने गाँव में

बाक़ी सिद्दीक़ी

अलविदा'अ

बाक़र मेहदी

वो रिंद क्या कि जो पीते हैं बे-ख़ुदी के लिए

बाक़र मेहदी

फ़रेब खा के भी शर्मिंदा-ए-सुकूँ न हुए

बाक़र मेहदी

मैं, एक और मैं

बलराज कोमल

इत्तिफ़ाक़

बलराज कोमल

रौशनी ही रौशनी है शहर में

बदीउज़्ज़माँ ख़ावर

आग ही काश लग गई होती

बदीउज़्ज़माँ ख़ावर

गिरे क़तरों में पत्थर पर सदा ऐसा भी होता है

अज़रा वहीद

कमाल-ए-हुस्न का जब भी ख़याल आया है

अज़ीज़ साबरी

तमाम उम्र किसी और नाम से मुझ को

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

अलावा इक चुभन के क्या है ख़ुद से राब्ता मेरा

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

साहिल पे रुक के सू-ए-समुंदर न देखिए

आज़ाद गुलाटी

वो

अतीक़ुल्लाह

बा'द मुद्दत मिले कुछ कहा न सुना भर गए ज़ख़्म पुरवाइयाँ सो गईं

अतीक़ अंज़र

पस-ए-दीवार हुज्जत किस लिए है

अता आबिदी

वो शख़्स जो नज़र आता था हर किसी की तरह

असरार ज़ैदी

वो रंग उड़े हैं कुछ अब के बरस बहारों के

असलम अंसारी

ये हम-सफ़र तो सभी अजनबी से लगते हैं

आसिम वास्ती

मिरी नज़र मिरा अपना मुशाहिदा है कहाँ

आसिम वास्ती

सदियों से अजनबी

अासिफ़ शफ़ी

किसे मजाल जो टोके मिरी उड़ानों को

अासिफ़ साक़िब

बासी रिश्ते

अशोक लाल

बहुत ख़ामोश रह कर जो सदाएँ मुझ को देता था

आशिर वकील राव

घटा जब रक़्स करती है तो उन की याद आती है

अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन

दिल अजनबी देस में लगा है

अशफ़ाक़ हुसैन

रहगुज़र भी तिरी पहले थी अजनबी

अशहर हाशमी

हो गई अपनों की ज़ाहिर दुश्मनी अच्छा हुआ

असग़र वेलोरी

फिर हुनर-मंदों के घर से बे-बुनर जाता हूँ मैं

अर्श सिद्दीक़ी

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