अजनबी Poetry (page 9)

सौत क्या शय है ख़ामुशी क्या है

फ़रहत शहज़ाद

तराना-ए-रेख़्ता

फ़रहत एहसास

उधर वो दश्त-ए-मुसलसल इधर मुसलसल मैं

फ़रहत एहसास

ग़ुबार दिल पे बहुत आ गया है धो लें आज

फ़रीद जावेद

पैरिस

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मिरी जाँ अब भी अपना हुस्न वापस फेर दे मुझ को

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

दिल-ए-मन मुसाफ़िर-ए-मन

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ढाका से वापसी पर

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तुम ऐसा करना कि कोई जुगनू कोई सितारा सँभाल रखना

एज़ाज़ अहमद आज़र

शहर-ए-बीना के लोग

एजाज़ रिज़वी

मुहाजिर

एजाज़ अहमद एजाज़

मिरे अज़ीज़ ही मुझ को समझ न पाए कभी

एहतिशाम अख्तर

परस्तिश-ए-ग़म का शुक्रिया क्या तुझे आगही नहीं

एहसान दानिश

क्या वहीं मिलोगे तुम

दर्शिका वसानी

गुम-शुदा आदमी का इंतिज़ार

चन्द्रभान ख़याल

हम से यूँ बे-रुख़ी से मिलते हैं

चमन लाल चमन

ख़ुशियाँ थीं बेवफ़ा न रहीं ज़िंदगी के साथ

बबल्स होरा सबा

रिस रहा है मुद्दत से कोई पहला ग़म मुझ में

बिलाल अहमद

न क़रीब आ न तो दूर जा ये जो फ़ासला है ये ठीक है

भवेश दिलशाद

मैं अब जो हर किसी से अजनबी सा पेश आता हूँ

भारत भूषण पन्त

पराया लग रहा था जो वही अपना निकल आया

भारत भूषण पन्त

आशिक़ समझ रहे हैं मुझे दिल लगी से आप

बेख़ुद देहलवी

मैं जब भी कोई अछूता कलाम लिखता हूँ

बेकल उत्साही

फ़स्ल-ए-गुल कब लुटी नहीं मालूम

बेकल उत्साही

सब की मौजूदगी समझता है

बशीर महताब

हम हथेली पे जान रखते हैं

बशीर महताब

इसी लिए तो यहाँ अब भी अजनबी हूँ मैं

बशीर बद्र

वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है

बशीर बद्र

मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला

बशीर बद्र

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