मिरे अज़ीज़ ही मुझ को समझ न पाए कभी
मैं अपना हाल किसी अजनबी से क्या कहता
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Gulzar
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Jaun Eliya
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Faiz Ahmad Faiz
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Parveen Shakir
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तुम जलाना मुझे चाहो तो जला दो लेकिन
दिल-ए-बर्बाद को छोटा सा मकाँ भी देगा
हिदायत
रौशनी का ग़ुलाम
चराग़ दिल का था रौशन बुझा गया पानी
ख़्वाब आँखों में निहाँ है अब भी
बारिश
शहर के अंधेरे को इक चराग़ काफ़ी है
छोटे क़द के लोग
सता रही है बहुत मछलियों की बास मुझे
सोच उन की कैसी है कैसे हैं ये दीवाने