शहर के अंधेरे को इक चराग़ काफ़ी है
सौ चराग़ जलते हैं इक चराग़ जलने से
Rahat Indori
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Anwar Masood
Gulzar
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सोच उन की कैसी है कैसे हैं ये दीवाने
रौशनी का ग़ुलाम
दिल-ए-बर्बाद को छोटा सा मकाँ भी देगा
तआ'क़ुब
मिरी हयात को बे-रब्त बाब रहने दे
सता रही है बहुत मछलियों की बास मुझे
छोटे क़द के लोग
बारिश
मैं सुन नहीं सकता
चराग़ दिल का था रौशन बुझा गया पानी
तुम जलाना मुझे चाहो तो जला दो लेकिन