अजनबी Poetry (page 7)
मुक़र्रेबीन में रम्ज़-आशना कहाँ निकले
रईस अमरोहवी
पहचान कम हुई न शनासाई कम हुई
राही कुरैशी
रात भर कोई न दरवाज़ा खुला
इक़बाल नवेद
अब इसे क्या करे कोई आँखों में रौशनी नहीं
इक़बाल अज़ीम
मिले वो दर्स मुझ को ज़िंदगी से
इक़बाल आबिदी
दुनिया से कौन जाता है अपनी ख़ुशी के साथ
इन्तिज़ार ग़ाज़ीपुरी
उस के नाम जिसे तारीकी निगल चुकी
इंजिला हमेश
बाज़याफ़्त
इंजिला हमेश
किस को हम-सफ़र समझें जो भी साथ चलते हैं
इंद्र मोहन मेहता कैफ़
वो संगलाख़ ज़मीनों में शेर कहता था
इम्तियाज़ साग़र
तुझ को देखा तो ये लगा है मुझे
इमरान हुसैन आज़ाद
राखी बंधन
इमाम अाज़म
नाम भी जिस का ज़बाँ पर था दुआओं की तरह
इफ़्तिख़ार नसीम
मिशअल-ए-उम्मीद थामो रहनुमा जैसा भी है
इफ़्तिख़ार नसीम
दर-ओ-दीवार इतने अजनबी क्यूँ लग रहे हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
समुंदर इस क़दर शोरीदा-सर क्यूँ लग रहा है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ज़ेहन ओ दिल के फ़ासले थे हम जिन्हें सहते रहे
इफ़्फ़त ज़र्रीं
ज़ेहन ओ दिल के फ़ासले थे हम जिन्हें सहते रहे
इफ़्फ़त ज़र्रीं
घबरा गए हैं वक़्त की तन्हाइयों से हम
इफ़्फ़त ज़र्रीं
रह-ए-जुस्तुजू में भटक गए तो किसी से कोई गिला नहीं
इफ़्फ़त अब्बास
ख़ेमगी-ए-शब है तिश्नगी दिन है
इदरीस बाबर
दिल कोई आईना नहीं टूट के रह गया तो फिर
इदरीस बाबर
पिछले-पहर के सन्नाटे में
इब्न-ए-इंशा
ऐ मिरे सोच-नगर की रानी
इब्न-ए-इंशा
रह-ए-तलब में बड़ी तुर्फ़गी के साथ चले
हुरमतुल इकराम
उस अजनबी से वास्ता ज़रूर था कोई
हिलाल फ़रीद
वही हुआ कि ख़ुद भी जिस का ख़ौफ़ था मुझे
हिलाल फ़रीद
ख़याल-ओ-ख़्वाब में कब तक ये गुफ़्तुगू होगी
हसन नईम
क्या ख़बर कब लौट आएँ अजनबी देसों से वो
हसन नासिर
डाइरी में लिख के मेरे तज़्किरे रख छोड़ना
हसन नासिर
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