अजनबी Poetry (page 6)

अख़ीर-ए-शब सर्द राख चूल्हे की झाड़ लाएँ

साबिर

अजल होती रहेगी इश्क़ कर के मुल्तवी कब तक

सबा अकबराबादी

दवाम के दयार में

रियाज़ लतीफ़

वही तवील सी राहें सफ़र वही तन्हा

ऋषि पटियालवी

बहारों को चमन याद आ गया है

रिफ़अत सुलतान

सफ़र में रस्ता बदलने के फ़न से वाक़िफ़ है

रेहाना रूही

हर आने वाले पल से डर रहा हूँ

रज़्ज़ाक़ अरशद

दिल की हालत बिगड़ रही है क्यूँ

रज़िया हलीम जंग

गली गली में तकल्लुफ़ की धूल होती है

रौनक़ नईम

क़ातिल सभी थे चल दिए मक़्तल से रातों रात

रउफ़ ख़लिश

लोग कि जिन को था बहुत ज़ोम-ए-वजूद शहर में

राशिद मुफ़्ती

ख़ुद-एहतसाबी

राशिद आज़र

मैं चोब-ए-ख़ुश्क सही वक़्त का हूँ सहरा में

रशीद निसार

मैं ने सोचा था इस अजनबी शहर में ज़िंदगी चलते-फिरते गुज़र जाएगी

रसा चुग़ताई

है लेकिन अजनबी ऐसा नहीं है

रसा चुग़ताई

ज़िंदाँ में भी वही लब-ओ-रुख़्सार देखते

राम रियाज़

मजबूर तो बहुत हैं मोहब्बत में जी से हम

राम कृष्ण मुज़्तर

मुझे मिली है अगर इन्फ़िरादियत की सनद

राम दास

ये ज़ख़्म ज़ख़्म बदन और नम फ़ज़ाओं में

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

क़सीदा फ़त्ह का दुश्मन की तलवारों पे लिक्खा है

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

कोई भी घर में समझता न था मिरे दुख सुख

राजेन्द्र मनचंदा बानी

हर जाद-ए-शहर

राजेन्द्र मनचंदा बानी

आख़िरी बस

राजेन्द्र मनचंदा बानी

सरसब्ज़ मौसमों का नशा भी मिरे लिए

राजेन्द्र मनचंदा बानी

न मंज़िलें थीं न कुछ दिल में था न सर में था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

बाहम सुलूक-ए-ख़ास का इक सिलसिला भी है

राज नारायण राज़

इक यही दुनिया बदलती है 'फ़रोग़'

रईस फ़रोग़

आज की रात

रईस फ़रोग़

घर मुझे रात भर डराए गया

रईस फ़रोग़

धूप में हम हैं कभी हम छाँव में

रईस फ़रोग़

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