अजनबी Poetry (page 8)

उस अजनबी से हाथ मिलाने के वास्ते

हसन अब्बासी

मिरी हयात अगर मुज़्दा-ए-सहर भी नहीं

हनीफ़ फ़ौक़

भुला दिया भी अगर जाए सरसरी किया जाए

हम्माद नियाज़ी

मुझ को मरने की कोई उजलत न थी

हामिदी काश्मीरी

यक़ीन से बाहर बिखरा सच

हमीदा शाहीन

तुम्हारे लब पे थी मैं भी

हमीदा शाहीन

कभी वो हाथ न आया हवाओं जैसा है

हकीम नासिर

आगे पीछे उस का अपना साया लहराता रहा

हकीम मंज़ूर

इक अजनबी के हाथ में दे कर हमारा हाथ

हफ़ीज़ मेरठी

तकिया

हफ़ीज़ जालंधरी

तिरी तलाश में जब हम कभी निकलते हैं

हफ़ीज़ होशियारपुरी

मता-ए-ग़ैर

हबीब जालिब

हम अहल-ए-आरज़ू पे अजब वक़्त आ पड़ा

हबीब हैदराबादी

वो एक दिन एक अजनबी को

गुलज़ार

उर्दू ज़बाँ

गुलज़ार

वो ख़त के पुर्ज़े उड़ा रहा था

गुलज़ार

मिले भी दोस्त तो इस तर्ज़-ए-बे-दिली से मिले

गुलाम जीलानी असग़र

वरक़ वरक़ जो ज़माने के शाहकार में था

गुहर खैराबादी

एक नज़्म

गोपाल मित्तल

हिसार-ए-जिस्म मिरा तोड़-फोड़ डालेगा

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

तमाम अजनबी चेहरे सजे हैं चारों तरफ़

फ़िराक़ जलालपुरी

शाम-ए-अयादत

फ़िराक़ गोरखपुरी

अब अक्सर चुप चुप से रहें हैं यूँही कभू लब खोलें हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

वही दो-चार चेहरे अजनबी से

फ़ज़्ल ताबिश

ये सन्नाटा बहुत महँगा पड़ेगा

फ़ज़्ल ताबिश

याद

फ़े सीन एजाज़

सुराग़ भी न मिले अजनबी सदा के मुझे

फ़रियाद आज़र

शहर का मंज़र हमारे घर के पस-ए-मंज़र में है

फ़ारूक़ शफ़क़

खिड़कियों पर मल्गजे साए से लहराने लगे

फ़ारूक़ शफ़क़

यादों का अजीब सिलसिला है

फ़ारिग़ बुख़ारी

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