इक अजनबी के हाथ में दे कर हमारा हाथ
लो साथ छोड़ने लगा आख़िर ये साल भी
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ये हुनर भी बड़ा ज़रूरी है
गुदाज़-ए-दिल से मिला सोज़िश-ए-जिगर से मिला
लहू से अपने ज़मीं लाला-ज़ार देखते थे
रसा हों या न हों नाले ये नालों का मुक़द्दर है
क्या जाने क्या सबब है कि जी चाहता है आज
सितम की तेग़ ये कहती है सर न ऊँचा कर
बद-तर है मौत से भी ग़ुलामी की ज़िंदगी
अब खुल के कहो बात तो कुछ बात बनेगी
ऐ दिल ख़ुशी का ज़िक्र भी करने न दे मुझे
पी कर चैन अगर आया भी कितनी देर को आएगा
इस दीवाने दिल को देखो क्या शेवा अपनाए है