दर्पण Poetry (page 12)

ज़ेहन ओ दिल के फ़ासले थे हम जिन्हें सहते रहे

इफ़्फ़त ज़र्रीं

बला नई कोई पालूँ अगर इजाज़त हो

इफ़्फ़त अब्बास

दुनिया लुटी तो दूर से तकता ही रह गया

इब्राहीम अश्क

तबीअत इन दिनों औहाम की उन मंज़िलों पर है

हुमैरा रहमान

क़यामतें गुज़र गईं रिवायतों की सोच में

हुमैरा रहमान

मिसाल-ए-ख़ाक कहीं पर बिखर के देखते हैं

हुमैरा राहत

हवा के साथ ये कैसा मोआमला हुआ है

हुमैरा राहत

आईना-दर-आईना

हिमायत अली शाएर

मेरा शुऊ'र मुझ को ये आज़ार दे गया

हिमायत अली शाएर

पानी पे बनते अक्स की मानिंद हूँ मगर

हिलाल फ़रीद

ये विसाल ओ हिज्र का मसअला तो मिरी समझ में न आ सका

हिलाल फ़रीद

आँसू तो कोई आँख में लाया नहीं हूँ मैं

हिलाल फ़रीद

वो शोख़ बाम पे जब बे-नक़ाब आएगा

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

सिलसिला ख़्वाबों का सब यूँही धरा रह जाएगा

हयात लखनवी

ये ख़ाकी आग से हो कर यहाँ पे पहुँचा है

हस्सान अहमद आवान

सूखे हुए दरख़्त के पत्तों को देखना

हसन निज़ामी

मैं जनम जनम का अनीस हूँ किसी तौर दिल में बसा मुझे

हसन नईम

अब आइना भी मिज़ाजों की बात करता है

हसन नासिर

खुले दिलों से मिले फ़ासला भी रखते रहे

हसन नासिर

उस इक उम्मीद को तो राहत-ए-सफ़र न समझ

हसन अकबर कमाल

दिल में तिरे ख़ुलूस समोया न जा सका

हसन अकबर कमाल

मकीं यहीं का है लेकिन मकाँ से बाहर है

हसन अब्बास रज़ा

गुल हुए चाक-गरेबाँ सर-ए-गुलज़ार ऐ दिल

हसन आबिद

सैद को रश्क-ए-चमन दाम ने रहने न दिया

हक़ीर जहानी

रात ढलते ही सफ़ीरान-ए-क़मर आते हैं

हनीफ़ फ़ौक़

आइने में है फ़क़त आप का अक्स

हनीफ़ अख़गर

दिल की मिरे बिसात क्या एक दिया बुझा हुआ

हनीफ़ अख़गर

चलो वापस चलें

हामिद यज़दानी

मुझ से ये प्यास का सहरा नहीं देखा जाता

हामिद मुख़्तार हामिद

कोई दूद से बन जाता है वजूद

हामिद जीलानी

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