अंदर Poetry (page 12)
नींद से आँख वो मिल कर जागे
शायर लखनवी
ख़्वाब से आँख वो मल कर जागे
शायर लखनवी
मैं अगर फ़िक्र के शह-पर से अलग हो जाऊँ
सीन शीन आलम
छुपाता हूँ मगर छुपता नहीं दर्द-ए-निहाँ फिर भी
सीमाब अकबराबादी
रात दिन आग में पला सूरज
सीमा शर्मा मेरठी
आसमाँ भी पुकारता है मुझे
सीमा शर्मा मेरठी
ग़म सहे रुस्वा हुए जज़्बात की तहक़ीर की
सय्यद आशूर काज़मी
कोई दिलकश सा अफ़्साना किसी दिलदार की बातें
सौरभ शेखर
हैरत से तकता है सहरा बारिश के नज़राने को
सऊद उस्मानी
इन्नी-कुंतो-मिनज़्ज़ालेमीन
सत्यपाल आनंद
दर्द-ए-दिल के लिए कुछ ऐसी दवा ली हम ने
सत्य नन्द जावा
मिरे जज़्बों को ये लफ़्ज़ों की बंदिश मार देती है
सरवत ज़ेहरा
तुम्हारी मुंतज़िर यूँ तो हज़ारों घर बनाती हूँ
सरवत ज़ेहरा
सवाल-अंदर-सवाल ले कर कहाँ चले हो
सरवत ज़ेहरा
जब आह भी चुप हो तो ये सहराई करे क्या
सरवत ज़ेहरा
ज़ौक़-ए-सुख़न को अब तो तेरे आग लगाना अच्छा है
सरवर नेपाली
पेपर-वेट
सरवत हुसैन
दस से ऊपर
सरवत हुसैन
जब शाम हुई मैं ने क़दम घर से निकाला
सरवत हुसैन
ढोल का पोल
सरमद सहबाई
सर झुका लेता था पहले जिस को अक्सर देख कर
सरमद सहबाई
ये जो तालाब है दरिया था कभी
सरफ़राज़ ज़ाहिद
ख़्वाब में मंज़र रह जाता है
सरफ़राज़ ज़ाहिद
एक रस्ते की कहानी जो सुनी पानी से
सरफ़राज़ नवाज़
सियाह रात के पहलू में जिस्म के अंदर
सरफ़राज़ ख़ालिद
मिरे मरने का ग़म तो बे-सबब होगा कि अब के बार
सरफ़राज़ ख़ालिद
मैं तो अब शहर में हूँ और कोई रात गए
सरफ़राज़ ख़ालिद
अब जिस्म के अंदर से आवाज़ नहीं आती
सरफ़राज़ ख़ालिद
तेरे होने से भी अब कुछ नहीं होने वाला
सरफ़राज़ ख़ालिद
आँख ही आँख थी मंज़र भी नहीं था कोई
सरफ़राज़ ख़ालिद
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