प्रदर्शन Poetry (page 9)

तिरी तलब ने फ़लक पे सब के सफ़र का अंजाम लिख दिया है

गुलज़ार बुख़ारी

मुंतज़िर आँखें हैं मेरी शाम से

गोविन्द गुलशन

किस को है हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद का दावा देखें

गोपाल मित्तल

अपने अंजाम से डरता हूँ मैं

गोपाल मित्तल

जबीन-ए-पारसा को देख कर ईमाँ लरज़ता है

ग़ुलाम मौला क़लक़

हर अदावत की इब्तिदा है इश्क़

ग़ुलाम मौला क़लक़

आह! कल तक वो नवाज़िश! आज इतनी बे-रुख़ी

ग़ुलाम भीक नैरंग

किस तरह वाक़िफ़ हों हाल-ए-आशिक़-ए-जाँ-बाज़ से

ग़ुलाम भीक नैरंग

तिरा मय-ख़्वार ख़ुश-आग़ाज़-ओ-ख़ुश-अंजाम है साक़ी

ग़ुबार भट्टी

निकोहिश है सज़ा फ़रियादी-ए-बे-दाद-ए-दिलबर की

ग़ालिब

बाग़ पा कर ख़फ़क़ानी ये डराता है मुझे

ग़ालिब

अर्ज़-ए-नाज़-ए-शोख़ी-ए-दंदाँ बराए-ख़ंदा है

ग़ालिब

दोस्ती अपनी जगह और दुश्मनी अपनी जगह

गणेश बिहारी तर्ज़

दोस्ती अपनी जगह और दुश्मनी अपनी जगह

गणेश बिहारी तर्ज़

ये नहीं कसरत-ए-आलाम से जल जाते हैं

फ़ितरत अंसारी

समझता हूँ कि तू मुझ से जुदा है

फ़िराक़ गोरखपुरी

मय-कदे में आज इक दुनिया को इज़्न-ए-आम था

फ़िराक़ गोरखपुरी

कोई पैग़ाम-ए-मोहब्बत लब-ए-एजाज़ तो दे

फ़िराक़ गोरखपुरी

दिल है मिरा रंगीनी-ए-आग़ाज़ पे माइल

फ़िगार उन्नावी

कुछ काम तो आया दिल-ए-नाकाम हमारा

फ़िगार उन्नावी

हासिल-ए-ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ नाकाम है

फ़िगार उन्नावी

आरज़ू हसरत-ए-नाकाम से आगे न बढ़ी

फ़िगार उन्नावी

बचपन

फ़ारूक़ नाज़की

सब्ज़ आग़ाज़ से सुर्ख़ अंजाम तक

फ़ारूक़ मुज़्तर

सोच भी उस दिन को जब तू ने मुझे सोचा न था

फ़ारूक़ मुज़्तर

वो न आएगा यहाँ वो नहीं आने वाला

फ़ारूक़ बख़्शी

आँखों में बसे हो तुम आँखों में अयाँ हो कर

फ़रहत कानपुरी

तेरे सूरज को तिरी शाम से पहचानते हैं

फ़रहत एहसास

सहर होने तक

फ़रीद इशरती

जो भी अंजाम हो आग़ाज़ किए देते हैं

फ़राग़ रोहवी

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