असर Poetry (page 16)

वाँ पहुँच कर जो ग़श आता पए-हम है हम को

ग़ालिब

तेरे तौसन को सबा बाँधते हैं

ग़ालिब

रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए

ग़ालिब

मज़े जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं

ग़ालिब

कहते तो हो तुम सब कि बुत-ए-ग़ालिया-मू आए

ग़ालिब

कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया

ग़ालिब

हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़

ग़ालिब

गुलशन में बंदोबस्त ब-रंग-ए-दिगर है आज

ग़ालिब

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक

ग़ालिब

किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी

फ़िराक़ गोरखपुरी

जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

ग़म तिरा जल्वा-गह-ए-कौन-ओ-मकाँ है कि जो था

फ़िराक़ गोरखपुरी

आज भी क़ाफ़िला-ए-इश्क़ रवाँ है कि जो था

फ़िराक़ गोरखपुरी

आई है कुछ न पूछ क़यामत कहाँ कहाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

शोहरत-ए-तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ आम हुई जाती है

फ़िगार उन्नावी

चमन अपने रंग में मस्त है कोई ग़म-गुसार-ए-दिगर नहीं

फ़िगार उन्नावी

कोहसारों में नहीं है कि बयाबाँ में नहीं

फ़ाज़िल अंसारी

ऐ कहकशाँ गुज़र के तिरी रहगुज़र से हम

फ़ाज़िल अंसारी

उस की गली में ज़र्फ़ से बढ़ कर मिला मुझे

फ़व्वाद अहमद

तुम्हारे लिए मुस्कुराती सहर है

फ़व्वाद अहमद

अधूरे लफ़्ज़ थे आवाज़ ग़ैर-वाज़ेह थी

फ़ातिमा हसन

मिरी ज़मीं पे लगी आप के नगर में लगी

फ़ातिमा हसन

मुनव्वर जिस्म-ओ-जाँ होने लगे हैं

फ़सीह अकमल

दे गया लिख कर वो बस इतना जुदा होते हुए

फ़सीह अकमल

ख़याल उस का कहाँ से कहाँ नहीं जाता

फ़र्रुख़ जाफ़री

तेज़ाब, आकार ख़ुश्बू का

फ़ारूक़ नाज़की

वो बहकी निगाहें क्या कहिए वो महकी जवानी क्या कहिए

फ़रहत कानपुरी

तिरा जल्वा शाम-ओ-सहर देखते हैं

फ़रहत कानपुरी

कोई भी हम-सफ़र नहीं होता

फ़रहत कानपुरी

तुझे ख़बर हो तो बोल ऐ मिरे सितारा-ए-शब

फ़रहत एहसास

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