असर Poetry (page 17)

शिकायत हम नहीं करते रिआ'यत वो नहीं करते

फ़रह इक़बाल

हमें तो साथ चलने का हुनर अब तक नहीं आया

फ़रह इक़बाल

वा-ए-नादानी ये हसरत थी कि होता दर खुला

फ़ानी बदायुनी

तेरा निगाह-ए-शौक़ कोई राज़-दाँ न था

फ़ानी बदायुनी

क़िस्सा-ए-ज़ीस्त मुख़्तसर करते

फ़ानी बदायुनी

किसी के एक इशारे में किस को क्या न मिला

फ़ानी बदायुनी

ख़ुदा असर से बचाए इस आस्ताने को

फ़ानी बदायुनी

ख़ल्क़ कहती है जिसे दिल तिरे दीवाने का

फ़ानी बदायुनी

दिल की हर लर्ज़िश-ए-मुज़्तर पे नज़र रखते हैं

फ़ानी बदायुनी

डरो न तुम कि न सुन ले कहीं ख़ुदा मेरी

फ़ानी बदायुनी

अब लब पे वो हंगामा-ए-फ़रियाद नहीं है

फ़ानी बदायुनी

आह अब तक तो बे-असर न हुई

फ़ानी बदायुनी

या रब मिरी हयात से ग़म का असर न जाए

फ़ना निज़ामी कानपुरी

काफ़िर-ए-इश्क़ को क्या से क्या कर दिया

फ़ना बुलंदशहरी

जल्वा जो तिरे रुख़ का एहसास में ढल जाए

फ़ना बुलंदशहरी

तसव्वुर में कोई आया सुकून-ए-क़ल्ब-ओ-जाँ हो कर

फ़ैज़ी निज़ाम पुरी

गर्मी-ए-शौक़-ए-नज़ारा का असर तो देखो

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सुब्ह-ए-आज़ादी (अगस्त-47)

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

शरह-ए-बेदर्दी-ए-हालात न होने पाई

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

गर्मी-ए-शौक़-ए-नज़ारा का असर तो देखो

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

चश्म-ए-मयगूँ ज़रा इधर कर दे

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तेरे जैसा कोई मिला ही नहीं

फ़हमी बदायूनी

दिल ओ निगाह में उस को अगर नहीं रहना

फ़हीम शनास काज़मी

धूप सा यू कपूल नारी है

फ़ाएज़ देहलवी

हिफ़ाज़त

एलिज़ाबेथ कुरियन मोना

ज़ीस्त में ग़म हैं हम-सफ़र फिर भी

एलिज़ाबेथ कुरियन मोना

जग में आता है हर बशर तन्हा

एलिज़ाबेथ कुरियन मोना

दुनिया सबब-ए-शोरिश-ए-ग़म पूछ रही है

एजाज़ सिद्दीक़ी

इतना तिलिस्म याद के चक़माक़ में रहा

एजाज़ गुल

यूँ उस पे मिरी अर्ज़-ए-तमन्ना का असर था

एहसान दानिश

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