असर Poetry (page 15)

लोग गीतों का नगर याद आया

हबीब जालिब

हर-गाम पर थे शम्स-ओ-क़मर उस दयार में

हबीब जालिब

फ़रियाद भी मैं कर न सका बे-ख़बरी से

हबीब मूसवी

देख लो तुम ख़ू-ए-आतिश ऐ क़मर शीशे में है

हबीब मूसवी

दाग़-ए-दिल हैं ग़ैरत-ए-सद-लाला-ज़ार अब के बरस

हबीब मूसवी

अक़्ल पर पत्थर पड़े उल्फ़त में दीवाना हुआ

हबीब मूसवी

बिछड़ो तो ये ध्यान रखना

हबीब कैफ़ी

अब तलक तुंद हवाओं का असर बाक़ी है

हबाब हाश्मी

ज़ाहिर मुसाफ़िरों का हुनर हो नहीं रहा

गुलज़ार बुख़ारी

शजर बाग़-ए-जहाँ का था जहाँ तक सब समर लाया

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

हर शजर के तईं होता है समर से पैवंद

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

तूफ़ान समुंदर के न दरिया के भँवर देख

गुहर खैराबादी

क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

खोल दी है ज़ुल्फ़ किस ने फूल से रुख़्सार पर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

दुआएँ माँगीं हैं मुद्दतों तक झुका के सर हाथ उठा उठा कर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

उल्फ़त का दर्द-ए-ग़म का परस्तार कौन है

गोविन्द गुलशन

अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए

गोपालदास नीरज

तेरा ख़ुलूस-ए-दिल तो महल्ल-ए-नज़र नहीं

गोपाल मित्तल

मौजूदगी का उस की असर होने लगा है

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

उन से कहा कि सिद्क़-ए-मोहब्बत मगर दरोग़

ग़ुलाम मौला क़लक़

क्या आ के जहाँ में कर गए हम

ग़ुलाम मौला क़लक़

हम तो याँ मरते हैं वाँ उस को ख़बर कुछ भी नहीं

ग़ुलाम मौला क़लक़

हुदूद-ए-क़र्या-ए-वहम-ओ-गुमाँ में कोई नहीं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अजब इंक़लाब का दौर है कि हर एक सम्त फ़िशार है

ग़ुबार भट्टी

ख़सारे में रहे लेकिन न छोड़ी सादगी हम ने

ग़यास अंजुम

हम ने जब चाहा कोई आग बुझाने आए

ग़यास अंजुम

इक सर्द-जंग का है असर मेरे ख़ून में

ग़ौसिया ख़ान सबीन

मुखड़ा वो बुत जिधर करेगा

ग़मगीन देहलवी

मिरा उस के पस-ए-दीवार घर होता तो क्या होता

ग़मगीन देहलवी

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक

ग़ालिब

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