असर Poetry (page 13)

गुज़रे बहुत उस्ताद मगर रंग-ए-असर में

हसरत मोहानी

देखने आए थे वो अपनी मोहब्बत का असर

हसरत मोहानी

तोड़ कर अहद-ए-करम ना-आश्ना हो जाइए

हसरत मोहानी

पैरव-ए-मस्लक-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा होते हैं

हसरत मोहानी

महरूम-ए-तरब है दिल-ए-दिल-गीर अभी तक

हसरत मोहानी

कैसे छुपाऊँ राज़-ए-ग़म दीदा-ए-तर को क्या करूँ

हसरत मोहानी

दर्द-ए-दिल की उन्हें ख़बर न हुई

हसरत मोहानी

और भी हो गए बेगाना वो ग़फ़लत कर के

हसरत मोहानी

कब तलक हम को न आवेगा नज़र देखें तो

हसरत अज़ीमाबादी

जिस का मयस्सर न था भर के नज़र देखना

हसरत अज़ीमाबादी

एक-दम ख़ुश्क मिरा दीदा-ए-तर है कि नहीं

हसरत अज़ीमाबादी

हम बे-नियाज़ बैठे हुए उन की बज़्म में

हाशिम रज़ा जलालपुरी

वो सब में हम को बार-ए-दिगर देखते रहे

हाशिम रज़ा जलालपुरी

लोग कहते हैं कि सूरज में अँधेरा क्यूँ है

हसीर नूरी

जो बात हक़ीक़त हो बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर कहिए

हसीब रहबर

ज़ुल्मत ही पहले थी जो हवाले में रह गई

हसन निज़ामी

जब मिरा महर जल्वा-गर होगा

हसन बरेलवी

हाल-ए-मर्ग-ए-बे-कसी सुन कर असर कोई न हो

हसन बरेलवी

अजीब हाल है सहरा-नशीं हैं घर वाले

हसन अज़ीज़

ऐ फ़ैरी-टेल

हसन अकबर कमाल

हुनर जो तालिब-ए-ज़र हो हुनर नहीं रहता

हसन अकबर कमाल

तुझ से बिछड़ के सम्त-ए-सफ़र भूलने लगे

हसन अब्बास रज़ा

ज़िंदगी अब रहे ख़ता कब तक

हरी मेहता

कलियों का तबस्सुम हो, कि तुम हो कि सबा हो

हरी चंद अख़्तर

ऐ यास जो तू दिल में आई सब कुछ हुआ पर कुछ भी न हुआ

हक़ीर

चश्म-ए-पुर-नम अभी मरहून-ए-असर हो न सकी

हनीफ़ फ़ौक़

इतना सुकून तो ग़म-ए-पिन्हाँ में आ गया

हनीफ़ अख़गर

अज़्म-ए-सफ़र से पहले भी और ख़त्म-ए-सफ़र से आगे भी

हनीफ़ अख़गर

जब तिलिस्म-ए-असर से निकला था

हामिद जीलानी

कल शाम लब-ए-बाम जो वो जल्वा-नुमा था

हमीद जालंधरी

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