आवारगी Poetry (page 2)

बढ़ रहे हैं शाम के मौहूम साए चल पड़ो

सरदार सलीम

हर क़दम आगही की सम्त गया

सलीम फ़िगार

न अब वो शिद्दत-ए-आवारगी न वहशत-ए-दिल

सहर अंसारी

विसाल-ओ-हिज्र से वाबस्ता तोहमतें भी गईं

सहर अंसारी

महसूस क्यूँ न हो मुझे बेगानगी बहुत

सहर अंसारी

हर एक मरहला-ए-दर्द से गुज़र भी गया

साबिर ज़फ़र

लाएगी गर्दिश में तुझ को भी मिरी आवारगी

रिन्द लखनवी

कभी यूँ भी करो शहर-ए-गुमाँ तक ले चलो मुझ को

राशिद तराज़

आँसू की तरह पोंछ के फेंका गया हूँ मैं

रशीद कौसर फ़ारूक़ी

यूँ गँवाता है कोई जान-ए-अज़ीज़

रसा चुग़ताई

फिर वही तू साथ मेरे फिर वही बस्ती पुरानी

राजेन्द्र मनचंदा बानी

सोचता हूँ सदा मैं ज़मीं पर अगर कुछ कभी बाँटता

इनआम आज़मी

शीशे का आदमी हूँ मिरी ज़िंदगी है क्या

इब्राहीम अश्क

तारों से माहताब से और कहकशाँ से क्या

हीरा लाल फ़लक देहलवी

बे-तअल्लुक़ ज़िंदगी अच्छी नहीं

हफ़ीज़ जालंधरी

उम्र जो बे-ख़ुदी में गुज़री है

गुलज़ार देहलवी

सुब्ह तक जिन से बहुत बेज़ार हो जाता हूँ मैं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए

ग़ालिब

रश्क कहता है कि उस का ग़ैर से इख़्लास हैफ़

ग़ालिब

हवस को है नशात-ए-कार क्या क्या

ग़ालिब

दोस्ती अपनी जगह और दुश्मनी अपनी जगह

गणेश बिहारी तर्ज़

दोस्ती अपनी जगह और दुश्मनी अपनी जगह

गणेश बिहारी तर्ज़

ज़ेहन की आवारगी को भी पनाहें चाहिए

फ़ारूक़ शफ़क़

धीरे धीरे शाम का आँखों में हर मंज़र बुझा

फ़ारूक़ शफ़क़

घर में चीज़ें बढ़ रही हैं ज़िंदगी कम हो रही है

फ़रहत एहसास

मय-कदे के सिवा मिली है कहाँ

फ़रीद जावेद

वो कहते हैं कि है टूटे हुए दिल पर करम मेरा

फ़ानी बदायुनी

जीना है ख़ूब औरों की ख़ातिर जिया करो

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

मिरी ही बात सुनती है मुझी से बात करती है

भारत भूषण पन्त

रौनक़ फ़रोग़-ए-दर्द से कुछ अंजुमन में है

बेबाक भोजपुरी

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