आवारगी Poetry (page 3)

हर गाम पे आवारगी-ओ-दर-ब-दरी में

बशीर अहमद बशीर

जब कोई टीस दिल दुखाती है

बलवान सिंह आज़र

हमारी मुफ़्लिसी आवारगी पे तुम को हैरत क्यूँ

अज़ीज़ अन्सारी

हम उस को भूल बैठे हैं अँधेरे हम पे तारी हैं

अज़ीज़ अन्सारी

इलाहाबाद से

असरार-उल-हक़ मजाज़

सामने रह कर न होना मसअला मेरा भी है

आसिम वास्ती

सुकूत-ए-शब के हाथों सोंप कर वापस बुलाता है

अशअर नजमी

तमाशा है कि सब आज़ाद क़ौमें

असद मुल्तानी

फैलती जा रही है ये दुनिया

अरशद लतीफ़

एक सूरत तिरी बनाने में

अरशद लतीफ़

घर से चीख़ें उठ रही थीं और मैं जागा न था

आरिफ़ शफ़ीक़

मैं अपने-आप से पीछा छुड़ा के

अनवर शऊर

जहल को आगही बनाते हुए

अम्मार इक़बाल

पस-ए-दीवार-ए-शब

अमीक़ हनफ़ी

सौ मिलीं ज़िंदगी से सौग़ातें

अली सरदार जाफ़री

चले बज़्म-ए-दौराँ से जब ज़हर पी के

अलीम मसरूर

ला-मकाँ से भी परे ख़ुद से मुलाक़ात करें

ऐनुद्दीन आज़िम

ज़माना हो गया है ख़्वाब देखे

अहमद शनास

ज़माना हो गया है ख़्वाब देखे

अहमद शनास

हम को आवारगी किस दश्त में लाई है कि अब

अहमद महफ़ूज़

लोग कहते थे वो मौसम ही नहीं आने का

अहमद महफ़ूज़

इक धन को एक धन से अलग कर लूँ और गाऊँ

अफ़ज़ाल नवेद

तिश्नगी बाक़ी रहे दीवानगी बाक़ी रहे

अफ़रोज़ तालिब

दिल कब आवारगी को भूला है

आबरू शाह मुबारक

अपनी कमी से पूछ न उस की कमी से पूछ

आबिद अख़्तर

आप के जाते ही हम को लग गई आवारगी

अब्दुल्लाह जावेद

चाँदनी का रक़्स दरिया पर नहीं देखा गया

अब्दुल्लाह जावेद

मिरी मैं जश्न-ए-शब-ए-मुनव्वर

अब्दुल अज़ीज़ फ़ितरत

दश्त-ए-हैरत में सबील-ए-तिश्नगी बन जाइए

अब्बास ताबिश

ज़मीन उन के लिए फूल खिलाती है

अब्बास अतहर

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