बात Poetry (page 59)

न सही गर उन्हें ख़याल नहीं

हसरत मोहानी

मुक़र्रर कुछ न कुछ इस में रक़ीबों की भी साज़िश है

हसरत मोहानी

क्या तुम को इलाज-ए-दिल-ए-शैदा नहीं आता

हसरत मोहानी

हर हाल में रहा जो तिरा आसरा मुझे

हसरत मोहानी

हाइल थी बीच में जो रज़ाई तमाम शब

हसरत मोहानी

दिल में क्या क्या हवस-ए-दीद बढ़ाई न गई

हसरत मोहानी

बरकतें सब हैं अयाँ दौलत-ए-रूहानी की

हसरत मोहानी

अपना सा शौक़ औरों में लाएँ कहाँ से हम

हसरत मोहानी

आप ने क़द्र कुछ न की दिल की

हसरत मोहानी

बुरा न माने तो इक बात पूछता हूँ मैं

हसरत अज़ीमाबादी

क्या कहूँ तुझ से मिरी जान मैं शब का अहवाल

हसरत अज़ीमाबादी

खोए हुए पलों की कोई बात भी तो हो

हसनैन आक़िब

दानाइयाँ अटक गईं लफ़्ज़ों के जाल में

हसनैन आक़िब

ज़र्द मौसम में भी इक शाख़ हरी रहती है

हाशिम रज़ा जलालपुरी

लोग कहते हैं कि सूरज में अँधेरा क्यूँ है

हसीर नूरी

जो भी यहाँ हुआ वो बहुत ही बुरा हुआ

हसीर नूरी

जो बात हक़ीक़त हो बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर कहिए

हसीब रहबर

चले गए हो सुकून-ओ-क़रार-ए-जाँ ले कर

हसन ताहिर

पहले सी अब बात कहाँ है

हसन रिज़वी

मैं अपने आप से ग़ाफ़िल न यूँ हुआ होता

हसन रिज़वी

चुप हैं हुज़ूर मुझ से कोई बात हो गई

हसन रिज़वी

अनीस-ए-जाँ हैं अभी तक निशानियाँ उस की

हसन रिज़वी

मैं जनम जनम का अनीस हूँ किसी तौर दिल में बसा मुझे

हसन नईम

ख़याल-ओ-ख़्वाब में कब तक ये गुफ़्तुगू होगी

हसन नईम

हुस्न के सेहर ओ करामात से जी डरता है

हसन नईम

अब आइना भी मिज़ाजों की बात करता है

हसन नासिर

खुले दिलों से मिले फ़ासला भी रखते रहे

हसन नासिर

गुलशन-ए-ख़ुल्द की क्या बात है क्या कहता है

हसन बरेलवी

जो नक़्श-ए-बर्ग-ए-करम डाल डाल है उस का

हसन अज़ीज़

देखूँ वो करती है अब के अलम-आराई कि मैं

हसन अज़ीज़

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