बात Poetry (page 58)

वक़्त ने रंग बहुत बदले क्या कुछ सैलाब नहीं आए

हिलाल फ़रीद

थी अजब ही दास्ताँ जब तमाम हो गई

हिलाल फ़रीद

रुकने के लिए दस्त-ए-सितम-गर भी नहीं था

हिलाल फ़रीद

मुमकिन ही नहीं कि किनारा भी करेगा

हिलाल फ़रीद

आँसू तो कोई आँख में लाया नहीं हूँ मैं

हिलाल फ़रीद

दुआ ही वज्ह-ए-करामात थोड़ी होती है

हिजाब अब्बासी

दिन रात तुम्हारी यादों से हम ज़ख़्म सँवारा करते हैं

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

अपने कहते हैं कोई बात तो दुख होता है

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

क्या बात है नज़रों से अंधेरा नहीं जाता

हीरा लाल फ़लक देहलवी

अपना घर फिर अपना घर है अपने घर की बात क्या

हीरा लाल फ़लक देहलवी

ये और बात है हर शख़्स के गुमाँ में नहीं

हीरा लाल फ़लक देहलवी

मेरी हस्ती में मिरी ज़ीस्त में शामिल होना

हीरा लाल फ़लक देहलवी

क्या कहें क्यूँकर हुआ तूफ़ान में पैदा क़फ़स

हीरा लाल फ़लक देहलवी

दिल शादमाँ हो ख़ुल्द की भी आरज़ू न हो

हीरा लाल फ़लक देहलवी

उतरने वाली दुखों की बरात से पहले

हज़ीं लुधियानवी

ज़बाँ से बात निकली और पराई हो गई सच है

हातिम अली मेहर

ज़ुल्फ़ अंधेर करने वाली है

हातिम अली मेहर

वो ज़ार हूँ कि सर पे गुलिस्ताँ उठा लिया

हातिम अली मेहर

ईज़ाएँ उठाए हुए दुख पाए हुए हैं

हातिम अली मेहर

गुल-बाँग थी गुलों की हमारा तराना था

हातिम अली मेहर

दरिया तूफ़ान बह रहा है

हातिम अली मेहर

आफ़्ताब अब नहीं निकलने का

हातिम अली मेहर

प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है

हस्तीमल हस्ती

इस बार मिले हैं ग़म कुछ और तरह से भी

हस्तीमल हस्ती

मुनहसिर वक़्त-ए-मुक़र्रर पे मुलाक़ात हुई

हसरत मोहानी

मालूम सब है पूछते हो फिर भी मुद्दआ'

हसरत मोहानी

जबीं पर सादगी नीची निगाहें बात में नरमी

हसरत मोहानी

उन को जो शुग़्ल-ए-नाज़ से फ़ुर्सत न हो सकी

हसरत मोहानी

तासीर-ए-बर्क़-ए-हुस्न जो उन के सुख़न में थी

हसरत मोहानी

रविश-ए-हुस्न-ए-मुराआत चली जाती है

हसरत मोहानी

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