गुलशन-ए-ख़ुल्द की क्या बात है क्या कहना है
पर हमें तेरे ही कूचे में पड़ा रहना है
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जल्वे तिरे जो रौनक़-ए-बाज़ार हो गए
मिरे मरने से तुम को फ़िक्र ऐ दिलदार कैसी है
गुलशन-ए-ख़ुल्द की क्या बात है क्या कहता है
हुस्न जब मक़्तल की जानिब तेग़-ए-बुर्राँ ले चला
देख आओ मरीज़-ए-फ़ुर्क़त को
जान अगर हो जान तो क्यूँ-कर न हो तुझ पर निसार
उल्फ़त हो किसी की न मोहब्बत हो किसी की
चश्म-ए-ज़ाहिर से रुख़-ए-यार का पर्दा देखा
अब्र है गुलज़ार है मय है ख़ुशी का दौर है
वो मन गए तो वस्ल का होगा मज़ा नसीब
मिल गया दिल निकल गया मतलब
उन का जल्वा नहीं देखा जाता