अब्र है गुलज़ार है मय है ख़ुशी का दौर है
आज तो डूबे हुए दिल को उछलने दीजिए
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उन का जल्वा नहीं देखा जाता
जान अगर हो जान तो क्यूँ-कर न हो तुझ पर निसार
हर सुख़न में वो सेहर करते हैं
कुछ हसीनों की मोहब्बत भी बुरी होती है
दिल को जानाँ से 'हसन' समझा-बुझा के लाए थे
चश्म-ए-ज़ाहिर से रुख़-ए-यार का पर्दा देखा
ओ वस्ल में मुँह छुपाने वाले
जब मिरा महर जल्वा-गर होगा
चोट जब दिल पर लगे फ़रियाद पैदा क्यूँ न हो
इश्क़ में बे-ताबियाँ होती हैं लेकिन ऐ 'हसन'
बोले वो बोसा-हा-ए-पैहम पर
क्या कहूँ क्या है मेरे दिल की ख़ुशी